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कवलाहारविचारः
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एतेनेदमप्यपास्तम्-यदि वेदनीयमफलम् तत्र तन्नास्त्येव ज्ञानावरणादिवत्, तथा च कर्मपञ्चकस्याभावस्तत्र प्राप्नोतीति। कथम् ? यद्यायुरधिकानि वेद्यादीनि स्वफलदानसमर्थानि; तहि मुक्त्यभावः। नो चेन्न तेषां कर्मत्वमिति तदपनयनाय योगिनो लोकपूरणादिप्रयासो व्यर्थः । अनुष्ठानविशेषेणापहृतसामर्थ्यानामवस्थानं वेद्यपि समानम् । न च कारणमस्तीत्येतावतैव कार्योत्पत्तिः अन्यथेन्द्रियादिकार्यस्याप्यनुषङ्गाभगवतो मतिज्ञानस्य रागादीनां च प्रसङ्गः । अथावरणक्षयोपशमस्य मोहनीयकर्मणश्च सहकारिणो विरहान्नेन्द्रियादि स्वकार्ये व्याप्रियते; अत एव वेदनीयमपि न व्याप्रियेत । न ह्यत्यन्तमात्मनि परत्र वा विरतव्यामोहस्तदर्थं किञ्चिदादातु हातु वा प्रवर्तते । प्रयोगः-यो यत्रात्यन्तं व्यावृत्तव्यामोहः स तदर्थं किञ्चिदादातु हातु वा न
जैसे ज्ञानावरणादि कर्म नष्ट हुए हैं फिर तो केवलीके पांच कर्मोंका अभाव होना स्वीकार करना होगा ? अब उपर्युक्त मंतव्य कैसे खंडित होता है सो बताते हैं केवली भगवानके आयुकर्मसे अधिक स्थिति वाले वेदनीयादि कर्म अपना फल देने में समर्थ होते हैं तो उन केवलीको कभी भी मुक्ति नहीं होगी, और यदि वे कर्म फलदानमें असमर्थ हैं तो उन कर्मोका अस्तित्व नहीं रहनेसे लोक पूरण समुद्घात होना व्यर्थ ठहरता है।
... श्वेताम्बर-यद्यपि अरहंत केवलीके कर्मोका अस्तित्व है किन्तु वह अनुष्ठान विशेष के कारण सामर्थ्यहीन हो गये हैं ?
दिगम्बर-यही बात वेदनीय कर्ममें घटित होती है, उसकी सामर्थ्य भी अनुप्ठान विशेष द्वारा नष्ट हो चुकी है, कारणके होने मात्रसे कार्यकी उत्पत्ति होवे ही ऐसा नियम नहीं है, यदि ऐसा मानेंगे तो भगवानके स्पर्शनादि इन्द्रियां होनेसे उनका कार्य जो मति ज्ञान उत्पन्न करना है वह भी मानना पड़ेगा, तथा रागकी उत्पत्ति भी माननी होगी, किन्तु यह सब नहीं होता है, ऐसे ही अंसाता रूप कारणके रहते हुए भी भोजनरूप कार्य नहीं होता ऐसा स्वीकार करना ही होगा।
श्वेताम्बर-आवरण कर्मके क्षयोपशम रूप सहकारी कारणके नहीं होनेसे तथा मोहनीयकर्मरूप सहकारीके नहीं होनेसे अरहंत की इन्द्रियां स्वकार्यको करने में प्रवृत्त नहीं हो पाती एवं रागादि उत्पन्न नहीं होते ।
__दिगम्बर-वेदनीयकर्मकी भी यही बात है वह भी मोहनीयकर्मके अभाव में स्वकार्य के करने में प्रवृत्त नहीं हो पाता । जो व्यक्ति अपने में या परमें अत्यन्त विरक्तचित्त हो जाता है वह आदान प्रदान रूप कुछ भी कार्य नहीं करता है, अनुमान प्रसिद्ध
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