________________
१७४
प्रमेयकमलमार्तण्डे
योगात् । स्वभावान्तरायत्तवृत्तयो हि भावाः कादाचित्काः स्युः तद्भावाभावप्रतिबद्धत्वात्तत्सत्त्वासत्वयोः, नान्ये तेषामपेक्षणीयस्य कस्यचिदभावात् ।
किञ्च, आत्मानं जनयति भावो निष्पन्नः, अनिष्पन्नो वा ? न तावनिष्पन्नः; तस्यामवस्थायामात्मनोपि निष्पन्नरूपाव्यलिरेकितया निष्पन्नत्वान्निष्पन्नस्वरूपवत् । नाप्यनिष्पन्ना; अनिष्पन्नस्वरूपत्वादेव गगनाम्भोजवत् । तस्मात्प्रकारान्तरेणाशेषज्ञत्वासिद्ध रावरणापाये एवाशेषविषयं विज्ञानम् । तच्चात्मन एवेति परीक्षादक्षः प्रतिपत्तव्यम् । तच्च विज्ञानमनन्त दर्शनसुखवीर्याविनाभावित्वादनन्तचतुष्टयस्वभावत्वमात्मनः प्रसाधयतीति सिद्धो मोक्षो जीवस्यानन्तचतुष्टयस्वरूपलाभलक्षणः, तस्यापेतप्रतिबन्धकस्यात्मस्वरूपतया जीवन्मुक्तिवत्परममुक्तावप्यभावासिद्धेः॥
दूसरी बात यह है कि अपने स्वरूपको उत्पन्न करने वाले वह पदार्थ निष्पन्न है अथवा अनिष्पन्न हैं ? निष्पन्न तो नहीं हो सकता, क्योंकि उस पदार्थके निष्पन्न अवस्थामें होनेपर उसका स्वरूप भी निष्पन्न रूपसे अभिन्न होनेके कारण निष्पन्न ही रहेगा, जैसा कि स्वयंका रूप निष्पन्न है । अपने स्वरूपको उत्पन्न करने वाला पदार्थ अनिष्पन्न है ऐसा दूसरापक्ष स्वीकार करे तो भी ठीक नहीं, क्योंकि अनिष्पन्न पदार्थ आकाश पुष्पकी तरह स्वयं के स्वरूपसे अनिष्पन्न है [स्वरूप रहित है]
इसप्रकार सर्वज्ञत्वके अस्तित्वको सिद्ध करनेके लिये सांख्यादि द्वारा प्रदत्त प्रकृतिकर्तृत्व आदि हेतु सदोष सिद्ध होते हैं, अतः सर्वज्ञ सिद्धिके लिये प्रकारांतरका अभाव होनेसे आवरणका अपायरूप हेतु द्वारा उसकी सिद्धि होती है अर्थात् संपूर्ण विषयोंको जानने वाला ज्ञान प्रावरणके नष्ट होनेपर ही उत्पन्न होता है ऐसा निश्चय हा । तथा ऐसा संपूर्ण विषयोंका जानने वाला ज्ञान प्रात्माके ही होता है ऐसा परीक्षादक्ष पुरुषोंको स्वीकार करना चाहिये । इसप्रकारका संपूर्ण विषयोंका जानने वाला जो ज्ञान है वह अनंतदर्शन, अनंतसुख, और अनंतवीर्यका अविनाभावी होनेसे अनंतचतुष्टयस्वरूप आत्माको सिद्ध कर देता है, अत: निश्चित होता है कि इस जीवके अनंतचतुष्टय स्वरूप स्वभावका लाभ होना मोक्ष है। यह अनंत चतुष्टय स्वरूपका लाभ प्रतिबंधक कर्मोंसे अपेत है अपना निजी शाश्वत स्वरूप होनेके कारण जीवन्मुक्त दशाके समान [अरिहंत अवस्थाके समान] परममुक्त दशामें [सिद्धोंमें] भी सदा विद्यमान रहता है, उसका परममुक्त दशामें अभाव नहीं होजाता है ।
। इति प्रकृतिकर्तृत्ववाद समाप्त ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org