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________________ १५० प्रमेयकमलमार्तण्डे यदि चासद्भवेत्कार्यं तर्हि पुरुषाणां प्रतिनियतोपादानग्रहणं न स्यात् । यथाहि-शालिबोजादिषु शाल्यादीनामसत्त्वं तथा कोद्रवबीजादिष्वपि । तथा च कोद्रवबीजादयोपि शालिफलाथिभिरुपादीयेरन् । न चैवम्, तस्मात्तत्र तत्कार्यमस्तीति गम्यते। ___ यदि चासदेव कार्य सर्वस्मात्तृणपांशुलोष्ठादिकात्सर्वं सुवर्णरजतादि कार्य स्यात्, तादात्म्यविगमस्य सर्वस्मिन्नविशिष्टत्वात् । न च सर्वं सर्वतो भवति तस्मात्तत्रैव तस्य सद्भावसिद्धिः। ननु कारणानां प्रतिनियतेष्वेव कार्येषु प्रतिनियताः शक्तयः । तेन कार्यस्यासत्त्वाविशेषेपि किञ्चिदेव कायं कुर्वन्ति; इत्यप्यनुत्तरम्; शक्ता अपि हि हेतवः शक्यक्रियमेव कार्य कुर्वन्ति नाशक्यक्रियम् । यच्चासत्तन्न शक्य क्रियं यथा गगनाम्भोरुहम्, असच्च परमते कार्य मिति । प्रकार कोद्रव आदि के बीजादि में भी है इसलिये शालि धान्यके इच्छुक पुरुष कोद्रव आदिके बोजोंको भी ग्रहण कर सकते हैं ? किन्तु ऐसा देखा नहीं जाता, अतः शालि बीजमें शालि अंकुर रूप कार्य है ऐसा निश्चित होता है। तथा यदि कार्यको असत् ही माना जाय तो तृण, धूल, लोष्ट आदि सभीसे सुवर्ण रजत आदि सभी कार्य सम्पन्न होगा, क्योंकि तादात्म्यका अभाव होनेसे सब कारणमें समानता रहेगी। किन्तु सब कारणसे सब कार्य नहीं होता अतः उसी एक कारणमें उसके कार्यका सद्भाव सिद्ध होता है । शंका-कारणोंकी प्रतिनियतकार्यों में ही प्रतिनियत शक्तियां हा करती है अतः कार्यके असत् रहते हुए भी कोई एक कारण किसी एक कार्यको ही करता है ? समाधान-यह कथन अयुक्त है, शक्त कारण शक्य कार्यको ही करते हैं, अशक्य कार्यको नहीं, जो असत् होता है वह अशक्य कार्य है जैसे गगनकुसुम, परवादी के यहां कार्यको असत् माना है अतः वह अशक्यकार्य है। बीजादिके कारणभावसे भी सत्कार्यवादकी सिद्धि होती है, क्योंकि कार्यका असत्व होता तो बीजादिमें कारण भाव नहीं देखा जाता । इसीको स्पष्ट करते हैं, कार्य अविद्यमान रहनेसे बीजादिमें कारणपना नहीं है, जैसे खरविषाण अविद्यमान रहनेसे किसीमें उसका कारणभाव नहीं देखा जाता । अतः उत्पत्तिके पहले कारणमें कार्य रहता है ऐसा सिद्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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