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________________ ईश्वरवादः १४१ ततो महेश्वरस्याशेषजगत्कर्तृत्वप्रसाधकस्यानवद्यप्रमाणस्यासम्भवात् कुतोऽनादिमुक्तत्वसिद्धियतोऽनाद्यशेषज्ञत्वमस्य स्यात् ? प्रयोग:-क्षित्यादिकं नैकैकस्वभावभावपूर्वकं विभिन्नदेशकालाकारत्वात्, यदित्थं तदित्थम् यथा घटपटमकुटशकटादि, विभिन्नदेशकालाकारं चेदम्, तस्मान्न कैकस्वभावभावपूर्वक मिति । न चेदमसिद्ध साधनम्; उर्वीपर्वततर्वादौ मिरिण विभिन्नदेशकालाकारत्वस्य सुप्रसिद्धत्वात् । नाप्यनैकान्तिकं विरुद्धं वा; विपक्षस्यैकदेशे तत्रैव वा वृत्तेरभावात् । ____ नन्वेकस्याप्यनेककार्यकर कुशलस्य कर्तु विचित्रसहकारिसान्निध्ये विचित्रकार्यकारित्वं दृश्यते, अतोऽनेकान्तः; इत्यप्यनुपपन्नम्। तत्राप्येकस्वभावत्वस्या सिद्ध':, स्वरूपमभेदयतां सहकारित्वस्यासम्भवप्रतिपादनात् । नापि कालात्ययापदिष्टम्; प्रत्यक्षागमाभ्यां पक्षस्याबाध्य मानत्वात् । न हि क्षित्यादौ विचित्रकार्ये प्रत्यक्षेणैकैकस्वभावः कर्लोपलभ्यते, तस्यातीन्द्रियतया प्रत्यक्षागोचरत्वस्य प्रागेव प्रतिपादनात्, आगमस्यापि तत्प्रतिपादकस्य प्रात्र प्रतिषेधात् । नापि सत्प्रतिपक्षम्; विपरीतार्थोपस्थापकस्यानुमानान्तरस्याभावात्, कार्यत्वादिहेतूनां चात्रैवानेकदोषदुष्टत्वप्रतिपादनादिति । भिन्न देश, काल आकारत्व प्रत्यक्ष से ही प्रसिद्ध है । तथा यह हेतु अनैकांतिक भी नहीं है और विरुद्ध भी नहीं है, क्योंकि विपक्ष के देश में रहना या मात्र विपक्ष में रहना इत्यादि हेतु सम्बन्धी दोषों से रहित है। यौग-एक पुरुष भी अनेक कार्य करने में कुशल होता है, उसको जब विचित्र विचित्र सहकारी कारण मिलते हैं तब वह अनेक कार्य करता ही है, अतः आपके अनुमान अनेकान्तिक दोष आता है । जैन - यह कथन ठीक नहीं है, एक पुरुष में एक स्वभाव नहीं है किन्तु अनेक स्वभाव हैं, तथा यह भी बात है कि जिसके स्वरूप में सर्वथा अभेद (एकत्व) रहता है उसमें सहकारी कारणों की सम्भावना होना अशक्य है ऐसा पहले सिद्ध कर चुके हैं। यह विभिन्न देश काल आकारत्व हेतु कालात्यापादिष्ट भी नहीं है, क्योंकि इस हेतु के पक्ष में प्रत्यक्ष और आगम प्रमाण से बाधा नहीं पाती है । पृथ्वी आदि अनेक कार्यों का कर्ता एक ईश्वर है, ऐसा प्रत्यक्ष से प्रतीत नहीं होता है क्योंकि अतीन्द्रिय होने से ईश्वर प्रत्यक्ष के अगोचर है ऐसा पहले हो प्रतिपादन कर चुके हैं, और ईश्वर का प्रतिपादन करने वाले आगम का खण्डन हो चुका है । यह हेतु सत्प्रतिपक्षी भी नहीं है, क्योंकि साध्य से विपरीत अर्थ को सिद्ध करने वाला कोई अनुमान नहीं है कार्यत्वादि हेतु वाले अनुमान अनेक दोषों से युक्त है ऐसा पहले ही सिद्ध कर दिया है । इस प्रकार जगत् कर्तृत्वरूप ईश्वर की सिद्धि नहीं होती है । ॥ ईश्वरवाद समाप्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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