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________________ १२२ प्रमेयकमलमार्तण्डे तत्कालवन्ह्यविनाभावोपलम्भाद् धूमघटिकादौ तन्मात्रं तत्कालवन्यनुमापकं स्यात् । अथ तत्र तत्कालवन्ह्यनुमाने प्रत्यक्षविरोधः; सोऽकृष्टजाते भूरुहादौ कर्बऽनुमानेपि समानः । तत्कर्तु रतीन्द्रियत्वात्तदविरोधे धूमघटिकादौ वर्भोरप्यतीन्द्रियत्वात्सोस्तु । भास्वररूपसम्बन्ध्यवयविद्रव्यत्वान्नातीन्द्रियत्वं तस्येति चेत्, एतदेव कुतोऽवसितम् ? महानसादौ तथाभूतस्यास्योपलम्भाच्च त्; तर्हि क्षित्यादिकर्तु : शरीरसम्बन्धिनोऽतीन्द्रियत्वं मा भूत्कुम्भकारादौ तस्यानुपलम्भात् । ननु वृक्षशाखाभङ्गादौ पिशाचादिः, स्वशरीरावयवप्रेरणे चात्माऽशरीरोऽपि कर्त्तापलब्धः; इत्यप्यसुन्दरम्; पिशाचादेः शरीरसम्बन्धरहितस्य कार्यकारित्वानुपपत्तेमुक्तात्मवत् । तत्सम्बन्धेनैव हि विशेष धूम का विशेष अग्नि के साथ अविनाभाव निश्चित होता है । इस प्रकार सामान्य कार्य सामान्य कारण का और विशेष कार्य विशेष कारण का अनुमापक होता है ऐसा सिद्धांत निश्चित होता है, फिर भी सामान्य कार्य को विशेष कारण का अनुमापक माना जायगा तो महानसादि में विशेष धूम तत्काल में अग्नि का अविनाभावी होता हुआ देखकर गोपाल घटिकादि में सामान्य धूम तत्काल में अग्नि का अनुमापक होने लगेगा। यौग-गोपाल घटिका में तत्काल अग्नि का अनुमान होने में प्रत्यक्ष से विरोध आता है। जैन-स्वयं उगने वाले वृक्षादि में कर्ता का अनुमान लगाने में भी प्रत्यक्ष से विरोध आता है। .. यौग-वृक्ष आदि का कर्ता अतीन्द्रिय है अतः कर्ता को सिद्ध करने वाले अनुमान में प्रत्यक्ष विरोध नहीं आता है। जैन-तो गोपाल घटिकादि में होने वाली अग्नि भी अतीन्द्रिय है अतः उसको सिद्ध करने वाले अनुमान में प्रत्यक्ष विरोध नहीं आता है, ऐसा मानना चाहिये। यौग-अग्नि भासुर रूप वाला अवयवी द्रव्य है अतः अतीन्द्रिय नहीं है । जैन-यह कैसे जाना ? महानस आदि में उसी प्रकार की अग्नि देखी है, ऐसा कहो तो पृथ्वी आदि का कर्ता भी शरीर का सम्बन्ध करने वाला होने से अतीन्द्रिय नहीं होना चाहिये ? क्योंकि कुभकार आदि कर्ता में अतीन्द्रियत्व की अनुपलब्धि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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