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________________ ईश्वरवादः १२१ अस्मादृशान्याश विशेषपरित्यागेन कर्तृत्वमात्रानुमाने च चेतनेतर विशेषत्यागेन कारणमात्रानुमानं किन्नानुमन्यते ? धूममात्रात्पावकमात्रानुमानवत् । यादृशमेव हि पावकमात्र पैङ्गत्यादिधर्मोपेतं कण्ठाक्ष विक्षेपकादित्वापाण्डुरत्वादिधर्मोपेतधूममात्रस्य प्रत्यक्षानुपलम्भप्रमारगजनितोहाख्यप्रमारणात्सर्वोपसंहारेण व्यापकत्वेन महानसादौ प्रतिपन्नं तादृशस्यैवान्यत्राप्यतोनुमानं नात्यन्त विलक्षणस्य, व्यक्तिसम्बन्धित्वमात्रस्यैव भेदात् । न च व्यक्तीनामप्यात्यन्तिको भेदो महानसादिवदन्यासामपि दृश्यतयोपगमात् । न च कार्यविशेषस्य कर्तृ विशेषमन्तरेणानुपलम्भात् तन्मात्रमपि कर्तृ विशेषानुमापकं युक्तम्; तस्य कारणत्वमात्रेणैवाविनाभाव निश्चयात्, धूममात्रस्याग्निमात्रेणा विनाभावनिश्चयवत् । घटादिलक्षरण कार्य विशेषस्य तु कारण विशेषेणाविनाभावावगमः चान्दनादिधूमविशेषस्याग्निविशेषेरणाविनाभावावगमवत् । तथापि कार्यमात्रस्य कारण विशेषानुमापकत्वे धूमादिकार्यविशेषस्य महानसादी होती जैसे कि खरविषाण की नहीं होती । तथा निराधार सामान्य का होना भी असंभव है, क्योंकि गोत्व सामान्य के आधार भूत खंडादि व्यक्ति विशेष का असंभव होने पर उससे विलक्षण महिष आदि में गोत्व सामान्य प्राश्रित रहता हुआ किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है । यदि पृथ्वी आदि का कर्ता हम जैसा है कि अन्य प्रकार का है इत्यादि विशेषका विचार न करके सामान्य से कोई एक कर्ता है ऐसा अनुमान से सिद्ध करना चाहते हैं तो चेतन और अचेतन ऐसे विशेष कारणों को छोड़कर सामान्य से पृथ्वी आदि का कोई कारण मात्र है ( परमाणु आदिक ) ऐसा क्यों न माना जाय ? जैसे सामान्य धूम को देखकर सामान्य ही अग्नि का अनुमान होना मानते हैं । पीत आदि धर्म से संयुक्त जिस प्रकार की अग्नि को कण्ठ और नेत्र में पीड़ा पहुंचाने वाले तथा सफेद आदि धर्म युक्त धूम सामान्य के साथ महानसादि स्थान पर प्रमाण द्वारा सर्वोपसंहार रूप व्यापकपने से ज्ञात किया था उसी प्रकार की अग्नि को अन्य स्थान पर भी ज्ञात करते हैं, अतः सामान्य हेतु से प्रत्यन्त विलक्षण का अनुमान नहीं होता, क्योंकि इसमें केवल व्यक्ति के सम्बन्धीपने का भेद रहता है । तथा यह व्यक्तियों का भेद भी प्रात्यन्तिक भेद नहीं हुआ करता, क्योंकि महानसादि के समान पर्वतादि व्यक्तियों में भी दृश्यता स्वीकार की गयी है । विशेष कर्ता के बिना विशेष कार्य उपलब्ध नहीं हो सकता, अतः सामान्य कार्य को विशेष कर्ता का अनुमापक मानना प्रयुक्त है । सामान्य कार्य तो सामान्य कारण के साथ ही अविनाभावी हुआ करता है, जैसे सामान्य धूम सामान्य अग्नि का अविनाभावी होता हैं । जो घटादि विशेष कार्य होता है उसका विशेष कारण के साथ अविनाभाव निश्चित होता है, जैसे चंदन संबंधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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