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सर्वजत्ववादः
इत्याद्यनुमानस्यास्मदादीनामपि भावात् । अनुमानागमज्ञानस्य चास्पष्टत्वात्तज्जनितस्याप्यवैशद्यसम्भवान्न तज्ज्ञानवान्सर्वज्ञो युक्तः।।
न च वक्तव्यम्-'पुन:पुनर्भाव्यमानं भावनाप्रकर्षपर्यन्ते योगिज्ञानरूपतामासादयत्तद्व शद्यभाग भविष्यति । दृश्यते चाभ्यासबलात्कामशोकायु पप्लुतज्ञानस्य वैशद्यम्' इति; तद्वदस्याप्युपप्लुतत्वप्रसङ्गात् ।
किञ्च, अस्याखिलार्थ ग्रहणं सकलज्ञत्वम्, प्रधामभूतकतिपयार्थ ग्रहणं वा ? तत्राद्यपक्षे क्रमेण तद्ग्रहणम् , युगपद्वा ? न तावत्क्रमेण; अतोतानागतवर्तमानार्थानां परिसमाप्त्यभावात्तज्ज्ञानस्याप्यपरिसमाप्तेः सर्वज्ञत्वायोगात् । नापि युगपत्; परस्परविरुद्धशीतोष्णाद्यर्थानामेकत्र ज्ञाने प्रतिभासा
अतीन्द्रियार्थ के साथ हेतु का अविनाभाव सिद्ध होना अशक्य है, बिना अविनाभाव संबंध सिद्ध हुए हेतु साध्य का ज्ञायक (सिद्ध करने वाला) नहीं होता। दूसरी बात यह है कि अनुमान से अशेषार्थ का ज्ञान होना शक्य है तो हम जैसे व्यक्ति भी सर्वज्ञ बन सकते हैं, क्योंकि हम लोग भी "यह जगत भाव, अभाव उभयरूप है, क्योंकि वह प्रमेय है" इत्यादि अनुमान प्रमाण से सकलार्थ को जानते हैं यह भी बात है कि अनुमान ज्ञान तथा प्रागम ज्ञान ये तो अस्पष्ट होते हैं उनसे उत्पन्न हुआ ज्ञान विशद नहीं होता, अत: इस ज्ञान के धारक पुरुष सर्वज्ञ नहीं कहला सकते ।
कोई कहे कि आगम या अनुमान जनित ज्ञान की पुनः पुनः भावना करने से भावना की चरम सीमा होगी और उस भावना प्रकर्ष के होने पर योगी के ज्ञान पने को प्राप्त होता हुअा विशद् रूप से प्रगट होवेगा, देखा भी जाता है कि अभ्यास के बल से काम, शोक आदि से व्याप्त ज्ञान विशद् रूप से अनुभव में आने लगता है ? सो यह कहना अयुक्त है, भावना ज्ञान के समान इस सर्वज्ञज्ञान में विशदता मानेंगे तो वह भावना के समान ही उपप्लत व्याहत बन जायेगा।
दूसरी बात यह है कि सर्वज्ञ की सर्वज्ञता संपूर्ण वस्तुओं को जानने वाली है या मुख्य मुख्य कुछ पदार्थों को जानने वाली है ? प्रथम पक्ष कहो तो वह सकलार्थ का ग्रहण क्रम से होता है या युगपत होता है ? क्रम से कहना नहीं, अतीत, अनागत, वर्तमान इन तीनों कालों में होने वाले पदार्थों का क्रम से जानकर अंत आ ही नहीं सकता, अंत पाये बिना पूरा सभी का ज्ञान नहीं होता और उसके बिना सर्वज्ञ बनता नहीं यह आपत्ति है । युगपत अशेष पदार्थों का ग्रहण होना भी शक्य नहीं है, परस्पर विरुद्ध स्वभाव वाले, शीत उष्ण आदि पदार्थों का एक ही ज्ञान में एक साथ प्रतिभास
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