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________________ सन्निकर्षप्रमाणवादपूर्वपक्षः ३६ विशेष्य विशेषणभावः संबंधः । तया चक्षुः संयुक्तस्य भूतलस्य घटाद्यभावो विशेषणं, भूतलं विशेष्यम् । विशेष्यविशेषणभाव नामक सन्निकर्ष कब होता है-सो ही बताते हैं- जब चक्षु से संयुक्त भूमि पर "यहां भूतल पर घट नहीं है इस प्रकार से घट के अभाव का ग्रहण होता है तब विशेष्य विशेषणभाव सन्निकर्ष होता है, वहां चक्षु से संयुक्त भूतल में घट का अभाव विशेषण है, तथा भूतल विशेष्य है । इस प्रकार ६ प्रकार का सन्निकर्ष होता है, और यही प्रमाण है, क्योंकि इसके बिना प्रमा की उत्पत्ति नहीं होती है, इस प्रकार प्रथम प्रमाण जो प्रत्यक्ष है उसका यह संक्षेप वर्णन समझना चाहिये । लिङ्गपरामर्शोऽनुमानम् । येन हि अनुमीयते तदनुमानम् । लिङ्गपरामर्शेण चानुमीयते ऽतो लिङ्गपरामर्शोऽनुमानम् । तच्च धूमादिज्ञानमनुमितिं प्रति करणत्वात्, अग्न्येयादिज्ञानमनुमितिः तत्करणं धूमादिज्ञानम् । द्वितीय अनुमान प्रमाण का लक्षण लिङ्ग (हेतु) परामर्श ही अनुमान है, जिससे अनुमिति की जाती है वह अनुमान है लिङ्गपरामर्श से अनुमिति की जाती अतः लिंगपरामर्श अनुमान है, और धूम आदि का ज्ञान ही लिंगपरामर्श है, क्योंकि वह अनुमिति के प्रति करण है अग्नि आदि का ज्ञान अनुमिति है उसका करण धूम आदि का ज्ञान है । तृतीय प्रमाण उपमा का लक्षण - अतिदेशवाक्यार्थस्मरणसहकृतं गोसादृश्यविशिष्ट पिण्डज्ञानमुपमान, यथा गवयमजानन्नपि नागरिको “यथा गौस्तथा गवयः", इति वाक्यं कुतश्चिदारण्यकात् पुरुषाच्छु त्वा वनं गतो वाक्यार्थं स्मरन् यदा गोसादृश्यविशिष्ट पिण्डं पश्यति तदा तद्वाक्यार्थस्मरण सहकृतं गोसादृश्य विशिष्टपिण्डज्ञानमुपमानमुपमितिकरणत्वात् । अतिदेशवाक्यके ( जैसी गाय होती है वैसा रोझ होता है ) अर्थका स्मरण करने के साथ गौ की समानता से युक्त पिण्ड ( शरीर-आकृति ) का ज्ञान ही उपमान प्रमाण है, जैसे-गवय को नहीं जानने वाला भी कोई नागरिक है, वह जब किसी वनवासी से यह वाक्य सुनकर कि जैसी गाय होती है वैसा गवय होता है वन में जाता है और वहां इस वाक्य के अर्थ का स्मरण करते हुए वह गौ की समानता से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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