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प्रमेयकमलमार्तण्डे
विषयाकार धारित्व-घट आदि पदार्थ ज्ञानके विषय कहलाते हैं, उनके प्राकारोंको ज्ञान अपने में धारण करता है ऐसा बौद्ध मानते हैं, इसीको विषयाकार धारित्व कहते हैं।
व्यवसाय-ज्ञानमें वस्तुका निश्चायकपना होना व्यवसाय कहलाता है । व्यतिरिक्त-पृथक या भिन्न ।
व्यतिरेक व्याप्ति-जहां जहां अग्नि आदि साध्य नहीं हैं वहां वहां धूम आदि साधन भी नहीं हैं, इसप्रकार साध्यके अभावमें साधनके अभावका अविनाभाव होना या दिखलाना व्यतिरेक व्याप्ति कहलाती है।
व्यतिरेक निश्चय- व्यतिरेक व्याप्तिका निश्चय या निर्णय होना। विशद विकल्प-"यह घट है" इत्यादि रूपसे स्पष्ट निश्चय होना।
विधातृ-“यह वस्तु मौजूद है" इस प्रकार अस्तिरूप वस्तुका जो ज्ञान होता है उस ज्ञानको विधातृ या विधायक ज्ञान कहते हैं।
विज्ञानाद्वैतवाद-जगतके संपूर्ण पदार्थ ज्ञानरूप ही हैं, ज्ञानको छोड़कर दूसरा कोई भी पदार्थ नहीं है ऐसा बौद्ध कहते हैं, इसीको विज्ञानाद्वैतवाद कहते हैं।
शून्यावत—चेतन अचेतन कोई भी पदार्थ नहीं है सब शून्यस्वरूप है बौद्धका एक भेद माध्यमिकका कहना है, इसीको शून्यावत कहते हैं।
शब्दाद्वैत-संपूर्ण पदार्थ तथा उनका ज्ञान शब्दमय है, शब्दब्रह्मसे निर्मित है, शब्दको छोड़कर अन्य कुछ भी नहीं है ऐसा भर्तृहरि आदि परवादीका कहना है ।
शक्यानुष्ठान - ग्रन्थमें जिसका प्रतिपादन किया जायगा उसका समझना तथा आचरणमें लाना शक्य है ऐसा बताना शक्यानुष्ठान कहलाता है।
समवाय-वैशेषिक छह पदार्थ मानते हैं उन छह पदार्थों में समवाय एक पदार्थ है।
समवाय संबंध-द्रव्यका अपने गुणों के साथ जो संबंध है वह समवाय संबंध है. द्रव्यों को गुणों से पृथक नहीं होने देना उसका काम है द्रव्योंकी उत्पत्ति प्रथम क्षणमें निर्गुण हुआ करती है और द्वितीय क्षणमें उसमें समवाय नामा पदार्थ गुणोंको संबंधित कर देता है ऐसी वैशेषिककी मान्यता है।
समवायी - आत्मा आदि द्रव्य, जिनमें समवाय आकर गुणोंको जोड़ देता है वे द्रव्य समवायी कहे जाते हैं।
समवेत-द्रव्यों में जो गुण जोड़े गये हैं वे गुण समवेत कहलाते हैं। संयोग-संबंध-दो पदार्थोंका या द्रव्योंका मिलना। संबंधाभिधेय--ग्रन्थमें वर्णन करने योग्य जो विषय हैं उनका संबंध बतलाना.
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