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________________ कतिपय विशिष्ट शब्दोंकी परिभाषा अनुमान--साधनसे होने वाले साध्यके ज्ञानको अनुमान कहते हैं, अर्थात् किसी एक चिह्न या कार्यको देखकर उससे संबंधित पदार्थका अवबोध करानेवाला ज्ञान अनुमान कहलाता है। जैसे दूरसे पर्वतपर धुआं निकलता देखा, उस धुएको देखकर ज्ञान हुआ कि “इस पर्वतपर अग्नि है, क्योंकि धूम दिखायी दे रहा है" इत्यादि स्वरूप वाला जो ज्ञान होता है वह अनुमान या अनुमान प्रमाण कहलाता है। अनुमेय–अनुमानके द्वारा जानने योग्य पदार्थको अनुमेय कहते हैं अन्यथानुपपत्ति-साध्यके विना साधनका नहीं होना, अथवा इसके विना यह काम नहीं हो सकता, जैसे बरसातके विना नदी में बाढ़ नहीं पाना इत्यादि। अर्थसंवित्-पदार्थ के ज्ञानको अर्थसंवित कहते हैं। अहंप्रत्यय-"मैं" इस प्रकारका अपना अनुभव या ज्ञान होना। अदृष्ट-भाग्य, कर्म, पुण्य इत्यादि अदृष्ट शब्दके अनेक अर्थ हैं, वैशेषिक इस प्रदृष्टको प्रात्माका गुण मानते हैं। अगौण-मुख्य या प्रधानको अगौण कहते हैं। अन्तर्व्याप्ति-जिस हेतुकी सिर्फ पक्षमें व्याप्ति हो वह अन्तर्व्याप्ति वाला हेतु कहलाता है। अन्योन्याश्रय-जहां पर दो वस्तु या धर्मोकी सिद्धि एक दूसरेके पाश्रयसे हो वह अन्योन्याश्रय या इतरेतराश्रय दोष कहलाता है। अश्वविषाण-घोड़ेके सींग ( नहीं होते हैं ) असाधारण अनेकान्तिक-"विपक्षसपक्षाभ्यां व्यावत मानो हेतुरसाधारणकान्तिक.” जो सपक्ष और विपक्ष दोनोंसे व्यावृत्त हो वह असाधारण अनैकान्तिक नामा सदोष हेतु है, यह हेत्वाभास यौगने स्वीकार किया है । अद्वैत-दो या दो प्रकारके पदार्थों का नहीं होना । अनवस्था-मूल क्षतिकरीमाहुरनवस्था हि दूषणम् । __ वस्त्वनंतेऽप्यशक्ती च नानवस्थाविचार्यते ॥१॥ अर्थात् जो मूल तत्वका ही नाश करती है वह अनवस्था कहलाती है, किन्तु जहां वस्तु के अनंतपनेके कारण या बुद्धिके असमर्थताके कारण जानना न हो सके वहां अनवस्था नहीं मानी जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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