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चक्षुःसन्निकर्षवादः
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शान्तरगतः स्पर्शः प्रकाश्येत ? न च कामलादयोऽञ्जनादयो वा चक्षुषः कारणं येन तेषामप्यनेन न्यायेन प्रकाशनं न स्यात्, स्वसामग्रीतस्तत्सन्निधानात्प्रागेवास्योत्पन्नत्वात् । नापि कालात्ययापदिष्टोयम् ; प्रत्यक्षस्य पक्षाबाधकत्वेन प्रागेव समर्थनात्, आगमस्य च तद्बाधकस्यासम्भवात् । नापि सत्प्रतिपक्षः; विपरीतार्थोपस्थापकानुमानानां प्रागेव प्रतिध्वस्तत्वादिति । तथा, 'चक्षुर्गत्वा नाऽर्थेनाभिसम्बद्धयते इन्द्रियत्वात्स्पर्शनादीन्द्रियवत्' इत्यनुमानाच्चास्याप्राप्यकारित्वसिद्धिः। अर्थस्य च तद्देशागमने प्रत्यक्षविरोध इति ।
नैयायिक-जैसे स्पर्शनेन्द्रिय अपने अभ्यन्तरके अवयवके स्पर्श को प्रकाशित नहीं कर पाती वैसे ही चक्षुरिन्द्रिय अपने अभ्यन्तरके कामलादिदोष या नेत्रांजनादिको प्रकाशित नहीं कर पाती है ?
जैन- यह कथन ठीक नहीं, क्योंकि जैसे शरीर के अभ्यंतरके अवयव स्पर्शनेन्द्रियके कारण हैं वैसे कामलादि चक्षुके कारण नहीं हैं, चक्षुरिन्द्रिय तो कामलादि के सन्निधिके होनेके पहले से ही अपने कारण कलाप द्वारा उत्पन्न हो चुकी है। इस प्रकार अत्यासन्नार्थ प्रप्रकाशकत्व हेतु अनेकान्तिक दोषसे निर्मुक्त है ऐसा निश्चित् हुआ । तथा यह हेतु कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है।
क्योंकि प्रत्यक्षप्रमाण से इसके पक्ष में बाधा नहीं है, ऐसा हम पहिले ही समर्थन कर आये हैं । आगमप्रमाण तो इस पक्ष में बाधा देता ही नहीं है । तथा-यह हेतु सत्प्रतिपक्ष दोषवाला भी नहीं है, सत्प्रतिपक्ष दोष उसे कहते हैं कि जिस हेतु को या उसके साध्यको दूसरा प्रमाण विपरीत सिद्ध कर देवे सो ऐसे विपरीत अर्थ को उपस्थित करनेवाले जो भी "तैजसं चक्षुः रूपादीनां मध्ये रूपस्यैव प्रकाशकत्वात् प्राप्यकारि चक्षुः" इत्यादि अनुमान हैं, उनका हम जैनों ने पहिले ही अच्छी तरह से निरसन कर दिया है। प्रत्यासन्नार्थ अप्रकाशकत्व हेतुवाले अनुमान से जैसे चक्षु में अप्राप्यकारित्व सिद्ध होता है वैसे ही चक्षु जाकर पदार्थ के साथ संबद्ध नहीं होती, क्योंकि वह इन्द्रिय है, जैसे स्पर्शनादि इन्द्रियां जाकर पदार्थों के साथ संबद्ध नहीं होती हैं, इस अनुमान के द्वारा भी चक्षु में अप्राप्यकारित्व निश्चित होता है, इस तरह किरण चक्षु गोलक चक्षु से निकलकर पदार्थ के पास जाती है ऐसा नैयायिकका कहना निराकृत हुआ, इन्द्रिय प्रदेश के पास पदार्थ आते हैं ऐसा मानना तो प्रत्यक्ष विरुद्ध है, इसलिये यह सिद्धांत अबाधित सिद्ध हुआ कि न इन्द्रियाँ पदार्थ के पास जाती हैं, और
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