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________________ म चक्षुःसन्निकर्षवादः प्रथोच्यते-स्पर्शनेन्द्रियादिवच्चक्षुषोपि प्राप्यकारित्वं प्रमाणात्प्रसाध्यते । तथा हि-प्राप्तार्थप्रकाशकं चक्षुः बाह्य न्द्रियत्वात्स्पर्शनेन्द्रियादिवत् । ननु किमिदं बाह्य न्द्रियत्वं नाम-बहिरर्थाभिमुख्यम्, बहिर्देशावस्थायित्वं वा ? प्रथमपक्षे मनसानेकान्तः; तस्याप्राप्यकारित्वेपि बहिरर्थग्रहणाभिमुख्येन बाह्य न्द्रियत्वसिद्ध: । द्वितीयपक्षे त्वसिद्धो हेतुः; रश्मिरूपस्य चक्षुषो बहिर्देशावस्थायित्वस्य श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने प्रत्यक्षप्रमाण के लक्षण का विवेचन करते हुए अन्त में कहा है कि प्रमाण का लक्षण सन्निकर्ष नहीं हो सकता है, क्योंकि चक्षु का अपने विषय के साथ सन्निकर्ष नहीं होता । तब नैयायिक चक्षु इन्द्रिय भी अपने विषय के साथ भिड़कर ही उसका ज्ञान कराती है इस बात को सिद्ध करने के लिये अनुमान प्रस्तुत करते हैं- "चक्षुः प्राप्तार्थप्रकाशकं बाह्येन्द्रियत्वात् स्पर्शनेन्द्रियादिवत्" इस अनुमान के द्वारा वे सिद्ध करते हैं-कि चक्षु पदार्थ से भिड़कर ही अपने विषय का ज्ञान कराती है, क्योंकि वह बाह्येन्द्रिय है, जो बाह्येन्द्रिय होती है वह अपने विषय का ज्ञान उसके साथ भिड़कर ही कराती है जैसे कि स्पर्शन प्रादि इन्द्रियां सो इस अनुमान से चक्षु अपने विषय के साथ सन्निकृष्ट होकर ही उसका ज्ञान कराती है ऐसा सिद्ध होता है। जैन-अच्छा तो यह बताईये कि आप बाह्येन्द्रिय किसे कहते हैं ? क्या बाहिरी पदार्थ के प्रति इन्द्रियों का अभिमुख होना बाह्येन्द्रियत्व है अथवा बाहिरी भाग में उनका अवस्थित होना बाह्येन्द्रियत्व है ? प्रथम पक्ष की मान्यता के अनुसार मन के साथ व्यभिचार आता है, क्योंकि मन अप्राप्यकारी होने पर भी बाह्य पदार्थ को ग्रहण करने के प्रति अभिमुख होता है अतः उसमें भी बाह्येन्द्रियपना मानना पड़ेगा ? पर वह बाह्येन्द्रिय है नहीं, कहने का अभिप्राय यह है कि जो बाह्य पदार्थ को ग्रहण करने के अभिमुख हो वह बाह्येन्द्रिय है ऐसा बाह्येन्द्रिय का लक्षण करके उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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