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चक्षुःसन्निकर्षवादः
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समानरूप से ज्ञान नहीं होता, इस प्रकार चक्षु को अप्राप्यकारी मानने से दूर और निकटवर्ती पदार्थों की रूपप्रतीति में जो भेद दिखाई देता है वह सिद्ध नहीं हो सकता, अतः चक्षु को प्राप्यकारी ही मानना चाहिये । अन्त में एक शंका और रह जाती है कि यदि चक्षु पदार्थ को छूकर जानती है तो काच प्रादि से ढके हुए पदार्थ को कैसे देख सकती है, क्योंकि जिस प्रकार दिवाल आदि के आवरण होने से उस तरफ के पदार्थ दिखाई नहीं देते हैं वैसे ही काच या अभ्रक आदि से अंतरित पदार्थ भी नहीं दिखाई देने चाहिये, सो इस प्रश्न का उत्तर "अप्रतिघातात्सन्निकर्षोपपत्तिः" ४६ ।। न काचोऽभ्रपटलं वा रश्मि प्रतिबध्नाति, सोऽप्रतिहन्यमानोऽर्थेन संबंध्यते-न्यायवार्तिक पृ० ३८२ सूत्र ४६" इस प्रकार से दिया गया है अर्थात वे काच आदि पदार्थ चक्षुकिरणों का विघात नहीं करते हैं, अतः उनके द्वारा अन्तरित वस्तु को चक्षु देख लेती है । मतलब-काच आदि से ढके हुए पदार्थ को देखने के लिए जब चक्षुकिरणें जाती हैं तब वे पदार्थ उन किरणों को रोकते नहीं-अत: उन काच आदिका भेदन करते हुए किरणें निश्चित ही उस वस्तु का सन्निकर्ष कर लेती हैं। इस प्रकार स्पर्शन आदि इन्द्रियों के समान चक्षु भी सन्निकर्ष करके ही पदार्थ के रूप का ज्ञान कराती है यह सिद्ध हुआ “यदि चक्षु पदार्थ को स्पर्श करके जानती है तो अपने में ही लगे हुए अंजन सुरमा आदि को क्यों नहीं देखती" ऐसी शंका होवे तो उसका समाधान यह है कि यह जो कृष्णवर्ण गोलक चक्षु है वह तो मात्र चक्षु इन्द्रिय का अधिष्ठान है-आधार है। कहा भी है-“यदि प्राप्यकारि चक्षर्भवति अथ कस्मादञ्जनशलाकादि नोपलभ्यते ? नेन्द्रियेरणा संबंधात् । इन्द्रियेण संबद्धा अर्था उपलभ्यन्ते न चाञ्जनशलाकादीन्द्रियेण संबद्ध अधिष्ठानस्यानिन्द्रियत्वात्, रश्मिरिन्द्रियं नाधिष्ठानं, न रश्मिनाञ्जनशलाका संबद्धा इति', (न्यायवार्तिक पृ० ३८५ ) अर्थात्-चक्षु प्राप्यकारी है तो वह अञ्जनशलाका प्रादि को क्यों नहीं ग्रहण करती ? तो इसका यह जवाब है कि उस काजल आदि का चक्षु इन्द्रिय से संबंध ही नहीं होता है, क्योंकि इन्द्रियां तो सम्बद्ध पदार्थों को ही जानती है, अञ्जनशलाका आदि इन्द्रिय के अधिष्ठान में ही संबद्ध हैं । रश्मिरूप चक्षु ही वास्तविक चक्षु है और उससे तो अञ्जन आदि संबंधित होते नहीं इसीलिये उनको चक्षु देख नहीं पाती है । इस प्रकार चक्षु प्राप्यकारी है, पदार्थों को छूकर ही रूप को देखती है यह बात सिद्ध होती है ।
* पूर्वपक्ष समाप्त *
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