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________________ ५८२ प्रमेयकमलमार्तण्डे त्म्यलक्षणोसो घटते; तयोर्भेदाभ्युपगमात् । नापि तदुत्पत्तिलक्षणः; घटादेस्तदकारणत्वात्, तस्य मुद्गरादिनिमित्तकत्वात् । तदुभयनिमित्तत्वाददोषः; इत्यप्यसुन्दरम् ; मुद्गरादिवद्विनाशोत्तरकालमपि घटादेरुपलम्भप्रसङ्गात् । तस्य स्वविनाशं प्रत्युपादानकारणत्वान्न तत्काले उपलम्भः; इत्यप्यसमीचीनम् ; अभावस्य भावान्तरस्वभावताप्रसङ्गात् तं प्रत्येवास्योपादानकारणत्वप्रसिद्धः। तयोविशेषणविशेष्यभावः सम्बन्धः; इत्यप्यसत्; परस्परमसम्बद्धयोस्तदसम्भवात् । सम्बन्धान्तरेण सम्बद्धयोरेव हि विशेषणविशेष्यभावो दृष्टो दण्डपुरुषादिवत् । न च विनाशतद्वतोः सम्बन्धान्तरेण पूर्ववत् अवस्थित रहने से "घट नष्ट हो गया" इसतरह की प्रतीति नहीं हो सकेगी। यदि विनाशके संबंधसे “विनष्ट हुआ" ऐसा प्रतिभास होता है, इसप्रकार माना जाय तो विनाश और विनाशवानमें कौनसा संबंध है इस बातको बतलाना होगा ? बताइये कि वह संबंध तादात्म्य स्वरूप है या तदुत्पत्ति स्वरूप है, अथवा उनका विशेषण विशेष्यभाव वाला है ? विनाश और विनाशवानमें तादात्म्य संबंध तो होता नहीं, क्योंकि आपने उन विनाश, विनाशवानमें भेद स्वीकार किया है । तदुत्पत्ति स्वरूप संबंध भी नहीं बनता, क्योंकि घटादि पदार्थ उसके [ नाशके ] अकारण हैं, उस नाशके कारण तो मुद्गरादिक हैं। शंका- मुद्गरादिक तथा घटादिक दोनों ही नाशके कारण मान लेवें फिर कोई दोष नहीं आयेगा ? समाधान-यह बात भी असत है, यदि मुद्गरादिके समान घट आदिक भी नाशके कारण माने जायेंगे तो नाश होनेके बाद मुद्गरादिके समान घटादिक भी उपलब्ध होने थे ? अभिप्राय यह है कि घटके नाशका कारण मुद्गर है और घट भी है ऐसा माने तो घटका नाश होनेके बाद मुद्गर [ लाठी ] तो दिखाई देती है किन्तु घट दिखाई नहीं देता, सो उसे भी दिखाई देना था ? क्योंकि उसे मुद्गर के समान ही नाश का कारण मान लिया। शंका-घट अपने नाशके प्रति उपादान कारण हुआ करता है अतः नाशके समय उपलब्ध नहीं होता ? समाधान- यह कथन असमीचीन है, यदि परवादी इसतरह मानते हैं तो उन्हें अभावको भावांतर स्वभाववाला स्वीकार करना होगा। भावांतर स्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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