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________________ अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः ५७६ शून्यता । अथ तत्प्रध्वंसेपि नास्याः प्रध्वंसो नित्यत्वात्, अन्यथार्थान्तरेषु सत्प्रत्ययोत्पत्तिर्न स्यात् ; तदन्यत्रापि समानम्, समुत्पन्न ककार्यविशेषणतया ह्यभावस्याभावेपि न सर्वथाऽभावःभावान्तरेप्यभावप्रतीत्यभावप्रसङ्गात् । यथा चाभावस्य नित्यैकरूपत्वे कार्यस्योत्पत्तिर्न स्यात् तस्य तत्प्रतिबन्धकत्वात्, तथा सत्ताया नित्यत्वे कार्यप्रध्वंसो न स्यात् तस्यास्तत्प्रतिबन्धकत्वात् । प्रसिद्ध हि प्रध्वंसात्प्राक्प्रध्वंसप्रतिबन्धकलां सत्तायाः, अन्यथा सर्वदा प्रध्वंसप्रसङ्गात् कार्यस्य स्थितिरेव न स्यात् । यदि पुनर्बलवत्प्रध्वंसकारणोपनिपाते कार्यस्य सत्ता न ध्वंसं प्रतिबध्नाति, ततः पूर्वं तु बलवद्विनाशकारणोपनि सत्ता नष्ट होते ही सब जगह की सत्ता समाप्त हो जायगी। इस तरह सत्ताके समाप्त होने से सकल शून्यता आयेगी। मीमांसक-कार्य के नष्ट होने पर भी सत्ता का नाश नहीं होता है क्योंकि सत्ता नित्य है । यदि सत्ता को नित्य नहीं मानेंगे तो एक जगह की सत्ता नष्ट होने पर अन्य पदार्थों की सत्ता नष्ट होती तो उनमें सत् का ज्ञान नहीं होता? जैन- यह बात अभाव में भी घटित होगी । इसी को बताते हैं-विशेषण रूप एक कार्य उत्पन्न होने पर तत् संबंधी प्रभाव नष्ट तो हो जाता है, किन्तु सर्वथा अभाव का अभाव नहीं होता, यदि सर्वथा सब प्रभाव का अभाव हो जाता तो कभी भी प्रभाव की प्रतीति नहीं होती तथा जिस प्रकार प्राप कहते हैं कि अभाव को एक एवं नित्य मानेंगे तो, कार्य की उत्पत्ति ही नहीं होगी क्योंकि सर्वदा रहने वाला प्रभाव तो कार्य का प्रतिबंधक ही होगा ? सो यही बात सत्ता के विषय में है-सत्ता को भी एक और नित्य मानते हैं तो कार्य का नाश कभी नहीं होगा, क्योंकि सत्ता नाश की प्रतिबंधक है । प्रसिद्ध बात है कि नाश के पहले सत्ता नाश का प्रतिबंध करती है, यदि सत्ता नाश को नहीं रोकती तो हमेशा प्रध्वंस होने से, कार्य स्थिर रहता ही नहीं ? यदि कोई कहे कि जब नाश का बलवान कारण उपस्थित होता है तब सत्ता कार्य के नाश को नहीं रोक सकती, लेकिन उसके पहले नाश का बलवान कारण नहीं आने से तो नाश को रोकती ही है ? अतः पहले भी कार्य के नाश होने का प्रसंग बताया था वह नहीं पा पाता है इत्यादि, सो यही बात अभाव में भी घटित होनी चाहिये ? क्या वहां यह न्याय काक भक्षित है ? देखो ! प्रभाव को भी सत्ता के समान एक सिद्ध करे-जब कार्य का बलवान उत्पादक उपस्थित हो जाता है तब अभाव मौजूद है तो भी वह कार्य की उत्पत्ति को नहीं रोकता किन्तु जब कार्य की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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