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प्रभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः
रणत्वे गुणादेरपि सर्वदा भावविशेषणत्वमस्तु, तद्विशेष्यस्य द्रव्यस्य सामर्थ्यतो गम्यमानत्वात् ।
किञ्च, प्रागभावः सादिः सान्तः परिकल्प्यते, सादिरनन्तः, श्रनादिरनन्तः अनादिः सान्तो वा ? प्रथमपक्षे प्रागभावात्पूर्वं घटस्योपलब्धिप्रसङ्गः तद्विरोधिनः प्रागभावस्याभावात् । द्वितीयेपि तदुत्पत्त ेः पूर्वमुपलब्धिप्रसङ्गस्तत एव । उत्पन्न तु प्रागभावे सर्वदानुपलब्धिः स्यात्तस्यानन्तत्वात् । तृतीये तु सदानुपलब्धिः । चतुर्थे पुनः घटोत्पत्तौ प्रागभावस्याभावे घटोपलब्धिवदशेषकार्योपलब्धि : स्यात्, सकलकार्याणामुत्पत्स्यमानानां प्रागभावस्यैकत्वात् ।
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जैन - तो फिर श्रापको गुण आदि में भी सिर्फ सर्वदा भाव विशेषणपना मानना होगा । विशेष्य द्रव्यकी तो सामर्थ्य से ही प्रतीति होगी ? भावार्थ - प्रभाव है किसका घटका है, ऐसा आप अभाव के विषय में अभाव को विशेष्य न मानकर द्रव्य को ही विशेष्य रूप स्वीकार करते हो वैसे ही गुरण हैं किसके द्रव्य के इस प्रकार द्रव्य में ही विशेष्यत्व है ऐसा मानना चाहिये। अब हम जैन मीमांसक से प्रागभाव के विषय में प्रश्न करते हैं-प्राप लोग प्रागभाव को सादि सांत मानते हैं, कि सादि अनंत, अथवा अनादि अनंत, या अनादि सांत, सादि सांत मानते हैं तो प्रागभाव के पहले घटकी उपलब्धि होने लगेगी, क्योंकि घटका विरोधी प्रागभाव का अभाव है ? दूसरा पक्ष - सादि अनंत प्रागभाव है ऐसा मानते हैं तो प्रागभाव के उत्पत्ति के पहले घटकी उपलब्धि होगी, क्योंकि घटका विरोधी जो प्रागभाव है वह सादि है [ अभी उत्पन्न नहीं हुआ है ] तथा जब प्रागभाव उत्पन्न हो जायगा तब घट कभी उपलब्ध नहीं होगा, क्योंकि अब प्रागभाव हटनेवाला है नहीं, वह तो अनंत है । तीसरा पक्ष - प्रागभाव अनादि अनंत है सो तब तो कभी भी घट उपलब्ध ही नहीं होगा ? क्योंकि घट का विरोधी प्रागभाव हमेशा ही मौजूद है । चौथा पक्ष - प्रागभाव अनादि सांत है ऐसा मानें तो प्रागभाव के अभाव में घटकी उत्पत्ति होनेपर जैसे घट की उत्पत्ति होगी वैसे साथ ही प्रशेष कार्योंकी उपलब्धि भी हो जावेगी ? क्योंकि उत्पन्न हो रहे सभी कार्योंका प्रागभाव एक है ।
मीमांसक -- प्रागभाव एक नहीं है किन्तु जितने कार्य हैं उतने ही प्रागभाव हैं उनमें से एक का प्रागभाव नष्ट होने पर भी उत्पन्न हो रहे शेष पदार्थों के प्रागभाव भी नष्ट नहीं हुए हैं, अतः घटकी उत्पत्ति के साथ ही सभी कार्यों की उपलब्धि नहीं हो पाती है ?
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