________________
५७२
प्रमेयकमलमार्तण्डे
भिद्यत-घटरहितत्वम्, घटाभावविशिष्टत्वमिति; तदप्यसाम्प्रतम् ; यतः किं घटाकारं भूतलं येन 'घटो न भवति' इत्युच्यमाने प्रत्यक्षविरोधः स्यात्, यद्भू तलं तद्घटाकाररहितत्वाद्घटो न भवत्येव । ननु यद्यपि भूतलान्नार्थान्तरं घटाभावः, तर्हि घटसम्बद्ध पि भूतले घटो नास्ति' इति प्रत्ययः स्यात्, न चैवम्, ततो यथा भूतलादर्थान्तरं घटस्तथा तदभावोपीति; तदप्यसारम् ; घटासम्भविभूतलगतासाधारणधर्मोपलक्षितं हि भूतलं घटाभावो व्यपदिश्यते । घटावष्टब्धं तु घटभूतलगतसंयोगलक्षणसाधारण धर्मविशिष्ट त्वेन तथोत्पन्नमिति न 'अघटं भूतलम्' इति व्यपदेशं लभते । तन्नेतरेतराभावो विचारक्षमः ।
व्याप्त भूतल घटाभाव है इस वाक्य का अर्थ जिस पृथिवी के भाग पर घड़ा रखा है वह स्थान, सो उस स्थान का घट के साथ तादात्म्य संबंध तो है नहीं, जिससे घट रखे हुए स्थान को घटाभाव नाम से पुकारा न जाय । भूतल तो घटाकार है नहीं, इसलिये वह घट नहीं और घट नहीं है तो उसको घटाभाव नाम दिया तो कोई बाधा नहीं आती है।
मीमांसक-- भूतल से पृथक् कोई घट का प्रभाव नहीं है ऐसा मानते हैं तो जहां जिस भूमि भागमें घट रखा है वहां भी, “घट नहीं है" इस प्रकार ज्ञान होना चाहिये ? किन्तु ऐसा होता नहीं, इसलिये जैसे घटको भूतल से न्यारा माना गया है, वैसे घट का अभाव भी पृथक्-न्यारा स्वीकार करना होगा ?
जैन-यह कथन असार है, घट में नहीं पाये जाने वाले भूतल गत असाधारण धर्म से युक्त भूतल को घटाभाव [ घटका अभाव इस नाम से ] कहते हैं । जो भूतल घट युक्त वह घट और भूतल में होनेवाले संयोग लक्षण साधारण धर्म से युक्त है । अतः उसको अघट भूतलं "घट रहित भूतल" ऐसा नहीं कहते । इस प्रकार मीमांसक का इतरेतराभाव सिद्ध नहीं होता है । तथा उसका लक्षण, उसका उपयोग उसको ग्रहण करने वाला प्रभाव प्रमाण सारे ही प्रसिद्ध हैं ] ।
__ मीमांसक का माना गया प्रागभाव भी ठीक नहीं है प्रागभाव भी पदार्थ से पृथक नहीं है, प्रमाण से ऐसा प्रतीत ही नहीं होता है कि पदार्थ पृथक् हो और उसका प्रागभाव पृथक् हो ।
मीमांसक- अनुमान से प्रागभाव को पृथक् सिद्ध करके बताते हैं-अपने उत्पत्ति के पहले घट नहीं था इस प्रकार का जो ज्ञान होता है वह असतु विषय वाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org