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अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः
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घटे पटः प्रतिषिध्यते, पटविविक्त वा ? न तावदाद्यः पक्षो युक्तः; प्रत्यक्षविरोधात् । नापि द्वितीयः; तथाहि-किमितरेतराभावादन्या घटस्य पटविविक्तता, स एव वा विविक्तताशब्दाभिधेयः ? भेदे; तयैव घटे पटाभावव्यवहारसिद्ध : किमितरेतराभावेन ? अथ स एव तच्छब्दाभिधेयः; तहि यस्मादभावात्पटविविक्त घटे पटाभावव्यवहारः सोन्योऽभावः, विविक्तताशब्दाभिधेयश्चान्य इत्येकस्मिन्वस्तुनीतरेतराभावद्वयमायातम् ।
किञ्च, 'घटे पटो नास्ति' इति पटरूपताप्रतिषेधः, सा किं प्राप्ता प्रतिषिध्यते, अप्राप्ता वा ? प्राप्तायाः प्रतिषेधे पटेपि पटरूपताप्रतिषेधः स्यात् प्राप्त रविशेषात् । अप्राप्तायास्तु प्रतिषेधानुपपत्तिः, प्राप्तिपूर्वकत्वात्तस्य । न ह्यनुपलब्धोदकस्य 'अनुदक: कमण्डलुः' इति प्रतिषेधो घटते। अथान्यत्र
में या पटरहित घट में पटका निषेध किया जाता है, पट विशिष्ट [पट सहित] घटमें पट का निषेध किया जाता है ऐसा कहना तो प्रत्यक्ष विरोधी बात होगी। दूसरा पक्ष भी ठीक नहीं, इसी बात को बताते हैं-घट में जो पटकी विविक्तता है वह इतरेतराभाव से अन्य है अथवा इतरेतराभाव ही पट विविक्तता शब्दसे कहा जाता है ? घट में जो पट विविक्तता है वह इतरेतराभाव से न्यारी ही कोई चीज है ऐसा प्रथम पक्ष माना जाय तो उसी विविक्तता से घट में पट के अभाव का व्यवहार हो जायगा । इतरेतराभाव के मानने की क्या आवश्यकता है ? दूसरा पक्ष-घट की पटविविक्तता ही इतरेतराभाव है ऐसा कहो तो जिस प्रभाव से पट रहित घट में पटके अभाव का व्यवहार होता है वह अभाव और विविक्तता शब्दसे कहा गया अभाव इसतरह दो अभाव एक ही वस्तु में माननेका प्रसंग पाता है। दूसरी बात यह है कि घटमें पट स्वरूप का निषेध करते हैं सो वह उस घट में प्राप्त हुआ है इसलिये करते हो अथवा प्राप्त नहीं होने पर करते हो ? यदि प्राप्त हुए पटका प्रतिषेध करेंगे तो पट में प्राप्त हुई पट रूपता का भी निषेध होने का प्रसंग प्राप्त होगा ? कोई विशेषता नहीं रहेगी।
द्वितीय पक्ष-घटमें पटका स्वरूप प्राप्त हुए विना ही उसका निषेध करते हैं तो ऐसा निषेध हो नहीं सकता, क्योंकि निषेध प्राप्ति पूर्वक ही होता है, देखो ! जिसने जलको उपलब्ध ही नहीं किया ऐसे कमंडलुमें यह कमंडलु जल रहित है ऐसा जलका निषेध नहीं कर सकते ।
शंका-अन्यत्र प्राप्त हुए पट रूपता का अन्यत्र प्रतिषेध किया जाता है ?
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