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प्रमेयकमलमार्तण्डे
शक्ति को मान लेवे तो उसके विषय में पुनः प्रश्न होते हैं कि वह शक्ति नित्य है या अनित्य ? नित्य है तो पदार्थ सदा ही कार्य करते बैठेंगे ? यदि अनित्य है तो वह अनित्य शक्ति किससे उत्पन्न होगी ? शक्ति से शक्ति होगी या शक्तिमान से ? शक्तिमान से कहो तो अनवस्था आती है । अशक्त से शक्ति उत्पन्न हुई कहो तो जैसे अशक्त से शक्तिरूप कार्य उत्पन्न हुआ, वैसे सभी पदार्थ शक्ति रहित होकर ही कार्य करते हैं ऐसा क्यों नहीं मानते ? व्यर्थ ही शक्ति की जो कि नेत्रादि से दिखायी नहीं देती कल्पना करते बैठते हैं । तथा वह शक्ति एक है या अनेक ? एक है तो उस एक शक्ति को धारण करने वाला पदार्थ एक साथ अनेक तरह के कार्य नहीं कर सकेगा, तथा एक में अनेक शक्तियां मानो तो भी बहुत से प्रश्न खड़े होंगे कि वह एक पदार्थ अनेक शक्तियों को एक स्वभाव से धारण करता है या अनेक स्वभावों से ? एक स्वभाव से धारेगा तो वे सारी शक्तियां एकमेक हो जावेंगी तथा अनेक स्वभावों से धारेगा तो वे अनेक स्वभाव किसी अन्य से धारण किये जायेंगे और इस तरह अनवस्था आयेगी। तथा शक्तिमानसे शक्ति भिन्न है या अभिन्न यह भी सिद्ध नहीं हो पाता अतः प्रतीन्द्रिय शक्तिकी कल्पना करना व्यर्थ है ?
जैन-यह प्रतिपादन अयुक्त है, अतीन्द्रिय शक्तिको सिद्ध करनेवाला अनुमान प्रमाण मौजूद है अत: कोई भी प्रमाण शक्तिका अस्तित्व सिद्ध नहीं करता ऐसा कहना असत्य है, उसी अनुमान प्रमाण को बताते हैं-प्रतिनियत मिट्टी, सूत्र [धागे] आदि पदार्थों में प्रतिनियत ही कार्य करने की शक्ति हुया करती है [पक्ष] क्योंकि उन मिट्टी आदि पदार्थों से प्रतिनियत घट आदि कार्य ही संपन्न होते हैं, (हेतु) उनसे हर कोई कार्य नहीं हो पाता । इस प्रकार प्रत्येक वस्तुमें अपने योग्य ही कार्य करने की क्षमता देखकर अलक्ष्य शक्तिका सद्भाव सिद्ध होता है । स्याद्वादी जैन ने इस शक्ति को शक्तिमान पदार्थसे कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न माना है, द्रव्यदृष्टिसे शक्तिमान से शक्ति अभिन्न है और पर्याय दृष्टिसे शक्तिमान से शक्ति भिन्न है, अर्थात् जगत में यावन्मात्र पदार्थ हैं वे द्रव्य पर्यायात्मक हैं। उनमें जो द्रव्यशक्ति है वह हमेशा रहती है और पर्याय शक्ति सहकारी सामग्रीसे उत्पन्न होती है, अत: अनित्य है। पर्याय शक्ति हमेशा मौजूद नहीं रहती इसलिये जब वह पर्याय शक्ति नहीं होती तब कार्य नहीं होता, इसप्रकार शक्ति कथंचित् नित्य (द्रव्यकी) और कथंचित अनित्य (पर्यायकी) है । पदार्थ में शक्तियां अनेक हुआ करती हैं । अनेक शक्तियोंको धारण
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