________________
शक्तिस्वरूपविचार:
५३३
कार्यकारित्वं घटते भावरूपतानुषङ्गात्, अर्थ क्रियाकारित्वलक्षणत्वात्परमार्थसतो लक्षणान्तराभावात्।
कश्चास्याभावः कार्योत्पत्ती सहकारी स्यात्-किमितरेतराभावः, प्रागभावो वा स्यात्, प्रध्वंसो वा, अभावमात्र वा ? न तावदितरेतराभावः; प्रतिबन्धकमणिमन्त्रादिसन्निधानेप्यस्य सम्भवात् । नापि प्रागभावः; तत्प्रध्वंसोत्तरकालं कार्योत्पत्त्यभावप्रसङ्गात् । नापि प्रध्वंसः प्रतिबन्धकमण्यादिप्रागभावावस्थायां कार्यस्यानुत्पत्तिप्रसङ्गात् । न च भावादर्थान्तरस्याभावस्य सद्भावोस्ति, तस्यानन्तरमेव
मंत्र क्रमश: अग्निकी शक्ति को प्रकट करनेवाले और रोकनेवाले होते हैं । इन मणि
आदि का प्रभाव अर्थात् प्रतिबंधक मणि आदिका अभाव मात्र अग्नि का सहकारी नहीं है । प्रतिबंधक का प्रभाव नहीं हो तो भी अग्निका कार्य देखा जाता है । नैयायिक अभावको तुच्छाभावरूप मानते हैं अतः प्रतिबंधक का अभाव अग्निका सहकारी है ऐसा वे कह भी नहीं सकते, यदि कहते हैं तो प्रभाव को जैनके समान भावरूप [पदार्थ रूप] मानने का प्रसंग पावेगा। जो अर्थक्रिया को करता है वही वास्तविक भाव या पदार्थ होता है । इस प्रकार अग्निकी शक्ति अतीन्द्रिय है यह उपर्युक्त प्रतिबंधक मणि आदि के उदाहरणों से सिद्ध हो जाता है । आप नैयायिक से हम जैनका प्रश्न है कि प्रतिबंधकका प्रभाव कार्यकी उत्पत्ति में सहकारी माना गया है, वह कौनसा अभाव है, इतरेतराभाव, प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अथवा प्रभाव सामान्य ? इतरेतराभाव सहकारी है ऐसा कहना शक्य नहीं, क्योंकि इतरेतराभाव [ एक का दूसरे में प्रभाव जो होता है वह ] रहने मात्रसे कोई कार्य में सहायता नहीं पहुंचती, ऐसा अभाव तो प्रतिबंधक मणि मंत्र आदि के सविधानमें भी होता है किन्तु कार्य तो नहीं होता अर्थात् प्रतिबंधक में उत्त भक का अभाव है वह इतरेतराभाव है वह जब प्रतिबंधक रखा है और उत्तंभक नहीं है ऐसे स्थान पर अग्नि का सहकारी जो इतरेतराभाव बताया गया है वह तो है, किन्तु कार्य स्फोट आदि होते नहीं। इसलिये इतरेतराभाव सहकारी नहीं होता । प्रागभाव भी सहकारी होता नहीं, यदि प्रागभाव सहकारी होगा तो जब प्रागभाव का नाश होता है तब कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकेगी, क्योंकि सहकारी कारण नष्ट हो गया है । प्रध्वंसाभाव भी सहकारी बनता नहीं, प्रध्वंसाभाव जब नहीं है ऐसे प्रतिबंधकमरिण आदि की जो प्रागभाव अवस्था होती है उस समय कार्य उत्पन्न नहीं हो सकेगा, मतलब प्रतिबंधक मणि आदि अभी हुए ही नहीं हैं ऐसे प्रागभाव अवस्था में अग्निकार्य चलता है वह नहीं होवेगा ? क्योंकि प्रध्वंसाभाव होवे तब कार्य करे । सो ऐसा है नहीं तथा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org