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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
यत्वाभ्युपगमात् । न खलु कल्पितसामान्यार्थविषयमनुमानं सौगतवज्जैनैरिष्टम्, तद्विषयत्वस्यानुमाने निराकरिष्यमाणत्वात् । प्रत्यक्षपूर्वकत्वाच्चानुमानस्य गौणत्वे प्रत्यक्षस्यापि कस्यचिदनुमानपूर्वकत्वाद्गौणत्वप्रसङ्गः, अनुमानात्साध्यार्थं निश्चित्य प्रवर्त्तमानस्याध्यक्ष प्रवृत्तिप्रतीतेः । ऊहाख्यप्रमाणपूर्व क त्वाच्चास्याध्यक्ष पूर्व कत्वमसिद्धम् ।
यत्रोक्तम् 'न च व्याप्तिग्रहणमध्यक्षतः' इत्यादि; तदप्युक्तिमात्रम् ; व्याप्त ेः प्रत्यक्षानुपलम्भबलोद्भूतो हाख्यप्रमाणात्प्रसिद्ध ेः । न च व्यक्तीनामानन्त्यं देशादिव्यभिचारो वा तत्प्रसिद्ध र्बाधिकः, सामान्यद्वारेण-प्रतिबन्धावधारणात्तस्य चानुगताऽबाधितप्रत्ययविषयत्वादस्तित्वम् । प्रसाधयिष्यते च "सामान्यविशेषात्मा तदर्थ :" [ परीक्षामुख ४ - १] इत्यत्र वस्तुभूतसामान्यसद्भावः ।
सोही बताते हैं - किसी पुरुषको धूम देखकर अग्निका ज्ञान हुआ पश्चात् साक्षात् पर्वतपर जाकर अग्निका प्रत्यक्षज्ञान हुआ सो ऐसा प्रत्यक्ष अनुमानके पीछे होता हुआ देखा जाता है । तथा यह बात प्रसिद्ध है कि अनुमान प्रत्यक्ष पूर्वक होता है, क्योंकि वह तो तर्क नामक प्रमाण पूर्वक होता है और अपने विषयको निश्चित रूपसे जानता है । चार्वाकने कहा कि व्याप्तिका ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा नहीं हो सकता इत्यादि, सो वह सब प्रलाप मात्र है, क्योंकि व्याप्तिका ज्ञान तो प्रत्यक्ष और अनुपलभ [ अन्वय व्यतिरेक ] दोनोंके बलसे उत्पन्न हुए तर्क नामक प्रमाणसे होता है ।
शंका - व्यक्तियोंकी [ धूम एवं अग्निकी ] अनंतता एवं देशादिका व्यभिचार तर्क प्रमारणकी सिद्धि में बाधक बनता है अर्थात् जहां जहां घूम होता है वहां वहां होती है, जहां अग्नि नहीं होती वहां धूम भी नहीं होता इसप्रकार से समस्त देश प्रौर कालका उपसंहार करनेवाला तर्क होता है, सो इस तर्क द्वारा साध्यसाधनभूत अंनंत व्यक्तियों में संबंध निश्चित नहीं हो सकता, अतः यह ज्ञान श्रप्रमाणभूत है ।
समाधान - यह कथन ठीक नहीं, क्योंकि व्यक्तियोंके अनंत होनेपर भी उनका सामान्यरूपसे तर्क द्वारा अविनाभाव निश्चित किया जा सकता है अतः तर्क ज्ञान प्रमाणभूत ही है, तथा अनुगत [ यह गौ है, यह गौ है ] विषयकी अबाधित प्रतीति करानेवाला होने से भी तर्क प्रमाणका अस्तित्व सिद्ध होता है, "सामान्य विशेषात्मातदर्थ: " इस सूत्र के विवेचन में हम यह सिद्ध करनेवाले ही हैं कि सामान्य [ अनुगत प्रत्ययका कारण ] भी वस्तुभूत होता है । [ काल्पनिक नहीं ] ।
चार्वाक - " प्रत्यक्षमेव प्रमाणमगौणत्वात् " प्रत्यक्ष ही प्रमाण है क्योंकि प्रधानभूत है ऐसा कहते हैं, किन्तु तर्क ज्ञान को प्रमाणभूत माने बिना ऐसा कहना
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