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प्रमेयकमलमार्तण्डे वविभावनात् । 'परपरिकल्पितकद्विव्यादिप्रमाणसख्यानियमे तदघटनात्' इत्याचार्यः स्वयमेवाने प्रतिपादयिष्यति । ये हि प्रत्यक्षमेकमेव प्रमाणमित्याचक्षते न तेषामनुमानादिप्रमाणान्तरस्यात्रान्तर्भावः सम्भवति तद्विलक्षणत्वाद्विभिन्न सामग्रीप्रभवत्वाच्च ।
ननु चास्याऽप्रामाण्यान्नान्तर्भावविभावनया किञ्चित्प्रयोजनम् । प्रत्यक्षमेकमेव हि प्रमाणम्, अगौणत्वात्प्रमाणस्य । अर्थनिश्चायकं च ज्ञानं प्रमाणम्, न चानुमानादर्थ निश्चयो घटते-सामान्ये सिद्धसाधनाद्विशेषेऽनुगमाभावात् । तदुक्तम्
चार्वाक -अनुमानादिक तो अप्रमाणभूत हैं अत: यदि उनका प्रत्यक्षमें अन्तर्भाव नहीं हुआ तो क्या आपत्ति है ? हम तो एक प्रत्यक्ष प्रमाण ही मानते हैं, क्योंकि वही मुख्य है, जो मुख्य होता है वह प्रमाणभूत होता है । जो पदार्थका निश्चय कराता है वह प्रमाण कहलाता है, जैनादि प्रवादी द्वारा माने गये अनमान से पदार्थका निश्चय तो होता नहीं, इसका भो कारण यह है कि अनुमान सिर्फ सामान्यका निश्चय कराता है और सामान्य तो सिद्ध [ जाना हुआ ] ही रहता है । भावार्थ - धूमको देखकर अग्नि निश्चय करना अनुमान है सो यह ज्ञान विशेष अग्निको [पत्तेकी अग्नि, काष्ठकी अग्नि] तो बताता नहीं, केवल सामान्य अग्निको बताता है, सामान्य अग्निमें तो विवाद रहता नहीं अत: अनुमान ज्ञान अर्थ निश्चय कराने में खास उपयोगी नहीं है । कहा भी है- अनुमान ज्ञान विशेषकी जानकारी कराता नहीं और सामान्य तो सिद्ध हो रहता है अतः अनुमान प्रमाणकी जरूरत नहीं है ।
अनुमान को प्रतित होनेके लिये व्याप्तिका ज्ञान होना जरूरी है तथा हेतु में पक्ष धर्मत्व होना भी जरूरी है, सो व्याप्तिका ज्ञान प्रत्यक्षसे नहीं हो सकता क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण सिर्फ निकटवर्ती वस्तुओंको ही जानता है, उसके द्वारा अखिल साध्य साधनभूत पदार्थों की अपेक्षा रखनेवाली व्याप्तिका ज्ञान होना अशक्य है, प्रत्यक्षमें ऐसी सामर्थ्य होती ही नहीं अनुमान द्वारा व्याप्तिका ग्रहण होना भी अशक्य है, क्योंकि व्याप्तिको जाननेवाला अनुमान भी तो व्याप्ति ग्रहण से उत्पन्न होगा, अब यदि इस दूसरे अनुमानकी व्याप्तिको ग्रहण करनेके लिए पुन: अनुमान आयेगा तो अनवस्था या इतरेतराश्रय दोष आयेगा कैसे सो ही बताते हैं-अनवस्था दोष तो इसप्रकार होगा कि-प्रथम नम्बरके अनुमानकी व्याप्तिको जाननेके लिये दूसरा अनुमान आया फिर उस दूसरे अनुमानकी व्याप्तिको जाननेके लिए तीसरा अनुमान प्रवृत्त हुआ इसप्रकार अनुमानांतर आते रहनेसे मूल क्षतिकरी अनवस्था पाती है । साध्य साधनकी व्याप्तिको
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