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श्रीमाणिक्यनन्द्याचार्यविरचित - परीक्षामुखसूत्रस्य व्याख्यारूपः श्रीप्रभाचन्द्राचार्यविरचितः
प्रमेयकमलमार्त्तण्डः
श्रीस्याद्वादविद्यायै नमः ।
सिद्ध ेर्धाम महारिमोहहननं कीर्त्तः परं मन्दिरम् मिथ्यात्वप्रतिपक्षमक्षयसुखं संशीतिविध्वंसनम् । सर्वप्राणिहितं प्रभेन्दुभवनं सिद्ध प्रमालक्षणम्, संत सि चिन्तयंतु सुधियः श्रीवर्द्धमानं जिनम् ॥ १ ॥
* मंगलाचरण *
श्री माणिक्यनंदी प्राचार्य द्वारा विरचित परीक्षामुखनामा सूत्रग्रन्थ की टीका करते हुए श्री प्रभाचन्द्राचार्य सर्व प्रथम जिनेन्द्रस्तोत्रस्वरूप मंगलश्लोक कहते हैंकि जो सिद्धिमोक्ष के स्थानस्वरूप हैं, मोहरूपी महाशत्रु का नाश करने वाले हैं, कीर्तिदेवी के निवास मंदिर हैं अर्थात् कीर्तिसंयुक्त हैं, मिथ्यात्व के प्रतिपक्षी हैं, अक्षय सुख के भोक्ता हैं, संशय का नाश करने वाले हैं, सभी जीवों के लिये हितकारक हैं, कान्ति के स्थान हैं, प्रष्ट कर्मों का नाश करने से सिद्ध हैं तथा ज्ञान ही जिनका लक्षण है अर्थात् केवलज्ञान के धारक हैं ऐसे श्री वर्द्धमान भगवान् का बुद्धिमान् सज्जन निज मन में ध्यान करें - चिन्तवन करें ।
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का अन्य दो
प्रकार से भी अर्थ हो इन तीनों की स्तुति
टिप्पणी के आधार से इस मंगलाचरण सकता है अर्थात् यह मंगलश्लोक अर्हन्तदेव, शास्त्र तथा गुरु स्वरूप है, इनमें से प्रथम अर्थ श्री प्रर्हन्तपरमेष्ठी वर्द्धमान स्वामी को विशेष्य करके संपन्न हुआ अब शास्त्र ( अथवा यह प्रमेयकमल मार्तण्ड ) की स्तुतिरूप दूसरा अर्थ
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