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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
जैन - प्रामाण्य के विषय में मीमांसक का यह कथन बाधित है प्रमाणोंद्वारा इन्द्रियोंके गुण ग्रहण नहीं होते ऐसा कहना गलत है, अनुमान प्रमाण द्वारा इन्द्रियादि गुणों की भली प्रकार से सिद्धि होती है, देखिये ! मेरे नेत्र निर्मलता प्रादि गुण युक्त हैं [ पक्ष ] क्योंकि यथार्थ रूपका प्रतिभास कराते हैं [ हेतु ] इसप्रकार वास्तविक रूप प्रतिभास वाले अविनाभावी हेतु द्वारा नेत्र इन्द्रियमें गुणका सद्भाव सिद्ध होता है । प्रामाण्यकी उत्पत्तिकी तरह ज्ञप्ति भी कथंचित् परतः हो सकती है, प्रामाण्य संवादक प्रत्यय से आता है ऐसी जैनकी मान्यता पर अनवस्थाका उद्भावन किया वह असत् है । बात यह है कि किसी भी विवक्षित प्रमाण में यदि अनभ्यस्त दशा है तो संवाद ज्ञानसे प्रमाणता आया करती है किन्तु वह संवाद ज्ञान तो स्वतः प्रामाण्य रूप ही रहता है क्योंकि अभ्यस्त है, इसलिये संवादक ज्ञानोंकी अपेक्षा आगे आगे बढ़ती जायगी और अनवस्था होवेगी ऐसा कहना प्रसिद्ध है ।
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प्रमाणकी प्रामाणिकताको सिद्ध करनेवाला संवाद प्रत्यय इस विवक्षित प्रमाणका सजातीय होता है या विजातीय भिन्न विषयवाला है या प्रभिन्नवाला है ? इत्यादि प्रश्नोंका बिलकुल सही उत्तर दिया जाता है, सुनिये ! संवाद प्रत्यय सजातीय भी होता है और कहीं विजातीय भी होता है, जैसे दूरसे किसी हिलती हुई सफेद वस्तुको देखकर ज्ञान हुआ कि यह ध्वजा है फिर प्रागे उसके निकट जाने पर उस ध्वजा के प्रतिभासका संवाद करनेवाला [ उसको पुष्ट करनेवाला ] बिलकुल स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि यह ध्वजा ही है । कहीं पर संवाद प्रत्यय विजातीय भी होता है, जैसे कहीं दूरसे सुमधुर शब्द सुनाई दिया तो उस शब्दको सुनकर हमें प्रतिभास हुआ कि यह वीणाकी भंकार सुनाई दे रही है । फिर आगे वीणाके स्थानपर जाकर देखते हैं तो उस रूप ज्ञान द्वारा पहले के वीणाके भंकार संबंधी प्रतिभास प्रामाणिक सिद्ध होता है । इन्हीं उदाहरणोंसे स्पष्ट होता है कि प्रमाणकी प्रमाणता को बतलानेवाला संवाद प्रत्यय भिन्न विषयवाला भी होता है और अभिन्न विषयवाला भी होता है । अप्रमाण में अप्रामाण्य परसे ही आता है तथा ऐसा माननेमें अनवस्था नहीं आती, इत्यादि रूपसे किया गया प्रतिपादन भी निर्दोष नहीं है । देखिये ! मीमांसकने कहा कि बाधक कारणादिसे अप्रामाण्य आता है और बाधक कारणादि तो स्वतः प्रमाणभूत रहते ही हैं अतः अनवस्था नहीं होगी, सो बात गलत है, अप्रमाण ज्ञानमें बाधा देनेवाला जो बाधक कारण आता है उसके प्रामाण्यके विषय में शंका उपस्थित होनेपर
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