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[ ३७ ] विषय
पृष्ठ | विषय प्रध्वंसाभावका लक्षण
५८१ | चक्षु है ? विनाश और विनाशवानमें तादात्म्यादि गोलकचक्षुसे किरणे निकलती हैं तो वे ___ संबंध नहीं है
५८२
दिखायी क्यों नहीं देती ? परवादीकी विनाश और उत्पादकी
यदि नेत्रकिरणे अनुमान से सिद्ध हैं तो प्रक्रिया गलत है
रात्रिमें सूर्य किरणे भी अनुमान प्रभावप्रमाणका प्रत्यक्षादि प्रमाणोंमें
से सिद्ध कर सकते __ अंतर्भाव करनेका सारांश ५८५-५८८ यदि बिलाव आदि के नेत्रोंमें किरणे हैं विशदत्वविचारः
५८९-६०२ तो उनसे मनुष्यके नेत्रमें क्या अकस्माद्भूमादिके देखनेसे होनेवाले
पाया?
. ६१६ अग्नि ग्रादिके ज्ञानको प्रत्यक्ष नहीं
चक्षु को प्राप्यकारी सिद्ध करनेको पुनः कह सकते
५८६
__ अनुमान प्रयोग व्याप्तिज्ञानको भी प्रत्यक्ष नहीं कह सकते ५६१
रूपादीनांमध्ये रूपस्यैव प्रकाशकत्वात् अस्पष्टज्ञान के विषय में बौद्धकी शंका ५६२
हेतु भी सदोष है
६१८ अस्पष्टत्व पदार्थ का धर्म नहीं है ज्ञानका जिसमें भासुर रूप और उष्णस्पर्श
दोनों अप्रकट हो ऐसा कोई भी स्पष्ट ज्ञानावरणकर्मके क्षयोपशमसे ज्ञान
तेजोद्रव्य नहीं है में स्पष्टता पाती है और अस्पष्ट
धत्त रके पुष्पके समान संस्थान वाली ज्ञानावरणके क्षयोपशमसे अस्पष्टता ५६५
नेत्र किरणे शुरुमें सूक्ष्म और अंतमें वैशद्यका लक्षण
विस्तृत होकर पर्वतादि महान स्वरूप संवेदनकी अपेक्षा स्मृति आदि
पदार्थको जानती हैं इत्यादि कथन ज्ञान भी प्रत्यक्ष है ५६६ असत् है
६२२ विशदत्वका सारांश
६०२ स्फटिक, काच, अभ्रक आदिसे अंतरित चक्षु सन्निकर्षवादका पूर्वपक्ष ६०३-६०५
वस्तुको नेत्रकिरणे कैसे छती हैं ? ६२४ चक्षुःसनिकर्षवादः ६०६-६३२ स्फटिकादिका नाश होकर शीघ्र अन्य इन्द्रियत्वात् हेतु चक्षुको प्राप्यकारी
स्फटिकादिका उत्पाद होनेका सिद्ध नहीं कर पाता
वर्णन
६२५ रश्मि चक्षुको कौनसे अनुमानसे सिद्ध नेत्रकिरणे अतिकठोर स्फटिकादि करोगे?
भेदन करती है तो मैले जलका कामला प्रादि दोषसे असंबद्ध कौनसी
भेदन कर उसमें स्थित वस्तुको
६२१
व
६००
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