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________________ पृष्ठ ५४० विषय पदार्थ पूर्व पूर्व शक्तिसे समन्वित होकर आगे आगे की शक्ति को उत्पन्न करते हैं प्रत्येक पदार्थ की शक्तियां अनेक हुआ करती हैं ५४१ एक ही पदार्थ में अनेक शक्तियोंका सद्भाव दीपक के उदाहरणसे सिद्ध होता है ५४३ विशेषार्थ ५४३-५४७ शक्तिस्वरूपविचारका सारांश ५४७-५५० अर्थापत्तेः पुनविवेचन ५५१-५५४ अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः [ मीमांसकके प्रति ] ५५५ निषेध्य वस्तुका अधारभूतभूतल प्रतियोगिसे संसर्गित प्रतीत होता है या असंसर्गित ? मीमांसक अभावप्रमाणकी सामग्रीमें प्रतियोगीका स्मरण होना रूप कारण भी बताते हैं यदि प्रत्यक्षद्वारा भूतलको जान लेने पर भी प्रतियोगीके स्मरण बिना घरका अभाव प्रतीत नहीं होता ऐसा माने तो प्रतियोगी भी अनु. भूत होनेपर ही स्मरण योग्य हो सकेगा १५७ सांख्य को समझानेके लिये अनुमानप्रमाण द्वारा प्रभावांशका ग्रहण होना सिद्ध करके बताते हैं प्रतियोगीकी निवृत्ति प्रतियोगी से असं विषय बद्ध है ऐसा कहना भी ठीक नहीं ५५९ प्रमाण पंचकाभावको विषय करनेवाले 'अभावप्रमाणसे प्रमाण पंचकाभाव जाना जाता है ऐसा कहना अनवस्था दोष युक्त है ५६० तदन्य ज्ञाननामका द्वितीय अभावप्रमाण भी घटित नहीं होता अभावद्वारा भी सद्भावकी सिद्धि होती है ५६४ मीमांसकके यहां कहे गये प्रागभावादिके ___लक्षण सुघटित नहीं होते ५६५ इतरेतराभाव असाधारणधर्मसे व्यावृत्त हुए पदार्थका भेदक है अथवा इतरेतराभाव घटको कतिपय पटादि व्यक्तियोंसे व्यावृत्त कराता है अथवा संपूर्णपटादि व्यक्तियोंसे ५६६-५७० प्रभावको भिन्न पदार्थरूप न माने तो अभावनिमित्तकलोकव्यवहार समाप्त होगा ऐसी अाशंका भी ठीक नहीं ५७१ अभाव भी अभावका विशेषण बन सकता है मीमांसकाभिमत प्रागभाव सादिसांत है या सादिअनंत, अनादि अनंत, अथवा अनादिसांत ? विशेषण के भेदसे अभाव में भेद मानना भी सिद्ध नहीं होता सत्ताको एकरूप मानते हो तो अभाव को भी एकरूप मानना चाहिये ? - ५७८ स्याद्वादी के प्रागभावका लक्षण ५८० ५७४ ५५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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