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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
किञ्चाद्यज्ञाने सति, प्रसति वा द्वितीयज्ञानमुत्पद्यते ? सति चेत् युगपज्ज्ञानानुत्पत्तिविरोधः । असति चेत्; कस्य तद्ग्राहम् ? असतो ग्रहणे द्विचन्द्रादिज्ञानवदस्य भ्रान्तत्वप्रसङ्गः ।
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किव, अस्मदादीनां तज्ज्ञानान्तरं प्रत्यक्षम् अप्रत्यक्षं वा । यदि प्रत्यक्षम् - स्वतः, ज्ञानान्त द्वा ? स्वतश्चेत् प्रथममप्यर्थज्ञानं स्वतः प्रत्यक्षमस्तु । ज्ञानान्तरात्प्रत्यक्षत्वे तदपि ज्ञानान्तरं ज्ञानान्तरात्प्रत्यक्षमित्यनवस्था । अप्रत्यक्षं चेत् कथं तेनाद्यज्ञानग्रहणम् ? स्वयमप्रत्यक्षैण ज्ञानान्तरेणात्मा
है वैसे ही जो अनेक हैं वे एक ज्ञान से जाने जाते हैं ऐसा अनेकत्व हेतु भी ईश्वर ज्ञान और सद् असद् वर्ग के साथ अनैकान्तिक हो जाता है । वे अनेक होकर भी एक ज्ञान से तो जाने नहीं जाते हैं । इस व्यभिचार को दूर करने के लिये यदि यौग ईश्वर ज्ञान को स्वसंविदित मान लेते हैं तो ईश्वर के इस गुणरूपज्ञान से ही प्रमेयत्व हेतु व्यभिचरित हो जाता है, इस बात को हम पहिले ही अच्छी तरह से कह आये हैं । भावार्थपहिले योग ने अनुमान प्रमाण उपस्थित किया था कि ज्ञान अन्यज्ञान से ही जाना जाता है, क्योंकि वह प्रमेय है जैसे कि घट पट श्रादि पदार्थ, इस अनुमान से सभी ज्ञानों को स्वयं को नहीं जाननेवाले सिद्ध किया था, अब यहां पर ईश्वर के ज्ञान को स्वयं को जाननेवाला मान रहे सो प्रमेयत्व हेतु गलत ठहरा, यदि हम जैसे अल्पज्ञानी के ज्ञानों को ज्ञानान्तर वेद्य मानते हैं तो इस विषय पर भी विवेचन हो चुका है, अर्थात् हम जैन ने यह सिद्ध किया है कि ज्ञान चाहे ईश्वर का हो चाहे सामान्य व्यक्ति का हो उसमें स्वभाव तो समानरूप से स्व औौर पर को जानने का ही है, ( विषय ग्रहण करने की शक्ति में भेद हो सकता है किन्तु स्वभाव तो समान ही रहेगा ।
अच्छा अब इस बात को बतावें कि पहिला ज्ञान रहते हुए दूसरा ज्ञान उत्पन्न होता है ? अथवा वह प्रथम ज्ञान समाप्त होने पर दूसरा ज्ञान आता है ? प्रथम ज्ञान के रहते हुए ही दूसरा ज्ञान आता है ऐसा कहो तो एक साथ अनेक ज्ञान उत्पन्न नहीं होते ऐसा आपका मत विरोध को प्राप्त होगा, दूसरा विकल्प मानें कि पहिला ज्ञान समाप्त होने पर द्वितीयज्ञान होता है सो भी गलत है, जब पहिला ज्ञान समाप्त हो गया तब दूसरा ज्ञान किसको ग्रहण करेगा ? यदि असत् को भी ग्रहण करेगा तो वह ज्ञान द्विचन्द्र आदि को ग्रहण करनेवाले ज्ञानों के समान ही भ्रान्त कहलावेगा ।
यह भी सोचना है कि प्रथम ज्ञान को जाननेवाला दूसरा ज्ञान है वह हम जैसे सामान्य व्यक्तियों के प्रत्यक्ष का विषय होता है अथवा नहीं होता ? प्रत्यक्ष होता
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