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________________ पृष्ठ [ २६ ] विषय पृष्ठ | विषय ज्ञान और पदार्थ का संश्लेष संबंध नहीं है २८६ । व्यंजककारण और कारककारण में ज्ञान जिससे उत्पन्न होता है उसीका अंतर ३०८-३०९ आकार धारता है तो इन्द्रियका भूतचतुष्टय से चैतन्य उत्पन्न होता है आकार क्यों नहीं धारता? २८७ तो क्या भूत चतुष्टय उसके इसप्रकार तदुत्पत्तिका इन्द्रिय के साथ उपादान कारण हैं ? ३१०-३११ और तदाकारताका समनंतर बिजली आदि पदार्थ भी विना उपादान प्रत्ययके साथ व्यभिचार आता के नहीं होते ३१२ २८६ | अनादिचैतन्य के माने विना जन्म जात प्रत्यक्ष ज्ञान नीलको नीलाकार होकर बालकके प्रत्यभिज्ञान नहीं हो जानते समय क्षणिकत्व भी क्यों सकता ३१३-३१४ नहीं जानता? २६१ शरीरके विना अहं प्रत्ययकी प्रतीति ३१५ साकारज्ञानवाद के खंडनका सारांश २६३-२६५ शरीररहित आत्माकी प्रतीति नहीं भूत चैतन्यवाद का पूर्व पक्ष २६६-२६७ होती इस वाक्यका क्या अर्थ है ? ३१६ भूत चैतन्यवाद [ चार्वाक ] २९८-३२० संसारावस्थामें शरीरसे अन्यत्र प्रात्माज्ञानको भूतों का परिणमन मानना का अवस्थान नहीं है ३१७ असत है २६८ भूतचैतन्यवादके खंडनका सारांश ३१८-३२० विजातीयतत्त्व विजातीयका उपादान ज्ञानको स्वसंविदित नहीं माननेवाले नहीं होता का पूर्व पक्ष ३२१ चैतन्य भूतोंसे असाधारण लक्षणवाला है ३०० स्वसंवेदन ज्ञानवाद अहंप्रत्यय शरीरमें नहीं होता ३०१ [ मीमांसक ] ३२२-३३९ शरीरादिमें होनेवाला अहंप्रत्यय मात्र औपचारिक है ज्ञानको प्रत्यक्ष होना माननेमें मीमांसक ३०२ अनुमान से भी आत्माकी प्रतीति होती है ३०३ द्वारा आपत्ति . चैतन्य शरीरका गुण नहीं है ३०४ जैन द्वारा उसका समाधान ३२३ एक शरीर में अनेक चैतन्य माननेका प्रसंग ३०५ भावेन्द्रियरूपमन और इन्द्रियां तो चैतन्य विषयभूत पदार्थका गुणभी नहीं ३०६ परोक्ष है ३२४ भूतोंसे चैतन्यकी अभिव्यक्ति होती है आत्मा स्वयं को जानते समय उस ऐसा कहना संदिग्ध विपक्ष जाननक्रियाका करण कौन व्यावृत्ति हेतु रूप है ३०७ बनेगा? ३२५ २६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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