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भूतचैतन्यवादः
२६९ वा तदुत्पादन (तदुपादान )हेतुः स्यात् ? प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यता; सूक्ष्मो हि भूतविशेषोऽचेतनद्रव्यव्यावृत्तस्वभावो रूपादिरहितः सर्वदा बाह्यन्द्रियाविषयः स्वसंवेदनप्रत्यक्षाधिगम्यः परलोकादिसम्बन्धित्वेनानुमेयश्च प्रात्मापरनामा विज्ञानोपादानहेतुरिति परैरभ्युपगमात् ।
तस्यातो विजातीयत्वे नोपादानभावः । सर्वथा विजातीयस्योपादानत्वे वह्नलाद्य पादानभावप्रसङ्गात् तत्त्वचतुष्टयव्याघातः । सत्त्वादिना सजातीयत्वात्तस्योपादानभावेपि अयमेव दोषः । प्रमाणप्रसिद्धत्वाचात्मनस्तदुपादानत्वमेव विज्ञानस्योपपन्नम् । तथा हि-यद्यतोऽसाधारणलक्षणविशेषविशिष्ट तत्त्वतस्तत्त्वान्तरम् ; यथा तेजसो वाय्वादिकम्, पृथिव्याद्यसाधारणलक्षण विशेषविशिष्ट च
होता है, वह परलोकगमन एवं पुण्य पाप आदि से अनुमान का विषय होता है, वही आत्मा ज्ञानका उपादान कारण है, अर्थात् ज्ञान आत्मा से उत्पन्न हुआ है ऐसा हम मानते हैं । द्वितीय विकल्प के अनुसार यदि सूक्ष्म भूतविशेष को विज्ञान से भिन्न जातिवाला मानने में आता है तो वह चैतन्य स्वरूप ज्ञान का उपादान कारण नहीं बन सकता है, क्योंकि सर्वथा विजातीय तत्त्व यदि अन्य का उपादान बनता है तो अग्निका उपादान जल भी बन सकता है, फिर तो आपका पृथक् रूप से सिद्ध किया गया तत्त्व चतुष्टय का व्याघात ही हो जायेगा।
चार्वाक-सत्त्व प्रादि की अपेक्षा से तो सूक्ष्मभूत चैतन्यस्वरूप ज्ञानका सजातीय ही कहलाता है अर्थात् जिस प्रकार ज्ञान में सत्त्व प्रमेयत्व आदि धर्म हैं; वैसे ही सूक्ष्मभूतों में भी सत्त्व प्रमेयत्व आदि धर्म हैं, अतः वह ज्ञान का सजातीय होने से उपादान बनता है।
जैन - ऐसा मानने पर भी यही पूर्वोक्त दोष आता है, अर्थात् जैसे सत्त्व आदि धर्म सूक्ष्मभूतों में हैं और ज्ञान में भी हैं अत: वे भूतविशेष ज्ञानके प्रति उपादान होते हैं वैसे ही अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी इनमें भी समानरूप से सत्त्व आदि धर्म रहते हैं, अतः इनमें भी परस्पर में उपादानभाव बनना चाहिये, अर्थात् अग्नि आदि से जल आदि होना स्वीकार करना चाहिये, किन्तु आपको यह इष्ट नहीं है, आप तो इन चारों का उपादान पृथक् पृथक् मानते हो, अतः सत्त्व आदि की अपेक्षा सजातीय बताकर चैतन्य ज्ञानके प्रति जडभूतविशेष में उपादानता सिद्ध करना शक्य नहीं है, देखियेप्रमाण से यह सिद्ध होता है कि प्रात्मा ही ज्ञान का उपादान है, अनुमान प्रयोग-चैतन्य पृथिवी आदि से भिन्न जातीय है, क्योंकि उसकी अपेक्षा उसमें असाधारण लक्षणविशेष
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