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________________ साकारज्ञानवाद: अर्थ- यह जो निर्विकल्प बुद्धिका अर्थाकार होता है वही तो पदार्थ के साथ संबंध जोड़ने वाला है, ज्ञान यदि पदार्थाकार न होवे तो उसमें घटज्ञान पटज्ञान इत्यादि भेद हो ही नहीं सकता। "न वित्तिसत्तैव तद्वदना युक्ता तस्याः सर्वत्रा विशेषात् । तां तु सारूप्यमाविशत् सरूप यत्तद् घटयेत्" ॥ भामती पृ० ५४२ ।। अर्थात केवल विशुद्ध निराकार ज्ञान होने से ही यह नील है इस प्रकार से अर्थ की प्रतीति नहीं हो सकती, क्योंकि वह ज्ञान तो सभी अर्थों में समानरूप से होता है, किन्तु वस्तु का सारूप्य जब उस ज्ञान में हो जाता है तब वह उस ज्ञान को वस्तु के आकार वाला बना देता है । इससे सिद्ध होता है कि कोई वस्तु ज्ञान का विषय इसलिये नहीं मानी जाती कि ज्ञान उसे ग्रहण करता है, अपितु जो ज्ञान जिस वस्तु से उत्पन्न होता है तथा जिसके सदृश होता है वही वस्तु उस ज्ञान का विषय कहलाती है। तत्सारूप्यतदुत्पत्तिभ्यां विषयत्वम् । तत्र बुद्धिर्यदाकारा तस्यास्तद् ग्राह्य मुच्यते ॥ -प्रमाणवातिक पृ० २२४ तथा स एव विषयो य आकारमस्यामर्पयति ।। (न्यायवातिक ता. पृ० ३८८) बद्धि या ज्ञान के विषय में प्रमाणवातिक आदि ग्रन्थों में इसी प्रकार का वर्णन मिलता है, कि ज्ञान जिस वस्तु के आकार का हुआ है वही वस्तु उस ज्ञान के द्वारा ग्राह्यग्रहण करने योग्य या जानने योग्य हुआ करती है। अन्य नहीं, जो पदार्थ ज्ञान में अपना आकार अर्पित करता है वही उसका विषय है, अन्य नहीं, इसीलिये अनेक पदार्थ हमारे सामने उपस्थित होते हुए भी ज्ञान जिस पदार्थ से उत्पन्न हुआ है और जिसके आकार को धारण किये हुए है उसी को मात्र वह जानता है, अन्य अन्य पदार्थ को नहीं। यहां यदि कोई प्रश्न करे कि ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होता है और उसके आकार को धारण करता है तो उसे इन्द्रिय के प्राकार भी होना चाहिये, क्योंकि ज्ञान जैसे पदार्थ से उत्पन्न होता है वैसे वह इन्द्रिय से भी उत्पन्न होता है ? सो उसका उत्तर इस प्रकार है यथैवाहारकालादे: समानेऽपत्यजन्मनि । पित्रोस्तदेकमाकारं धत्ते नान्यस्य कस्यचित् ॥ -प्रमाणवातिक पृ० ३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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