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विज्ञानाद्वैतवादः
२४३ प्रतिभासायोगप्रतिपत्तिरित्यभिधातव्यम् ; 'जडप्रतीतिः, प्रतिभासायोगश्चास्य, इत्यन्योन्यविरोधात् ।
साध्य विकलश्चायं दृष्टान्तः, नैयायिकादीनां सुखादौ ज्ञानरूपत्वासिद्ध: । अस्मादेव हेतोस्तत्रापि ज्ञानरूपतासिद्धौ दृष्टान्तान्तरं मृग्यम् । तत्राप्येतचोद्य तदन्तरान्वेषणमित्यनवस्था । नीलादेई शान्तत्वे चान्योन्याश्रयः-सुखादी ज्ञानरूपतासिद्धौ नीलादेस्तन्निदर्शनात्तद्र पतासिद्धिः, तस्यां च तन्निदर्शनात्सुखादेस्तद्र पतासिद्धिरिति । न च सुखादी दृष्टान्तमन्तरेणापि तत्सिद्धिः; नीलादावपि जड़ को जाना-विषय किया, फिर विचार यदि जड़ को विषय करता है तो प्रत्यक्ष अनुमानादि भी जड़ को विषय करेंगे-जानेंगे, इस तरह उन पदार्थों में प्रतिभास का अयोग-अर्थात अभाव सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि वे पदार्थ तो विचार आदि के विषयभूत हो चुके हैं।
यदि जड़ पदार्थ प्रतिपन्न हैं - जाने हुए हैं और उनमें प्रतिभास का प्रयोग है ऐसा जाना जाता है, तो ऐसा कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि यह तो परस्पर सर्वथा विरुद्ध बात है कि जड़ की प्रतीति है और फिर उसमें प्रतिभास का अयोग है।
विज्ञान अद्वै तसिद्ध करने के लिये दिये गये अनुमान में जो दृष्टान्त है वह भी साध्य विकल है, देखिये-परवादी जो नैयायिक आदि हैं, उनके यहां सुख आदि में ज्ञानपना नहीं माना है, इसलिये जैसे सुख दुःख आदि ज्ञानरूप हैं वैसे पदार्थ ज्ञान रूप हैं ऐसा आपका दिया हुआ यह उदाहरण गलत होता है। यदि तुम कहो कि इसी प्रतिभासमानत्व हेतु से दृष्टान्तभूत सुखादि में भी ज्ञानपने की सिद्धि हो जावेगी सो भी बात बनती नहीं-क्योंकि यदि दिये गये वे दृष्टान्तभूत सुखादि जो हैं उनमें मूल हेतु से ज्ञानपना सिद्ध करना है तो वे साध्य कोटि में आ जावेंगे अत: दूसरा दृष्टान्त लाना होगा फिर उस द्वितीय दृष्टान्त में भी प्रश्न और उत्तर करने होंगे कि उनमें ज्ञानत्वसिद्ध है या नहीं इत्यादि फिर वह भी साध्य की कोटि में चला जायगा सो उसकी सिद्धि के लिये अन्य और दृष्टान्त देना होगा, इस प्रकार अनवस्था प्रायगी, इस अनदस्था दोष से बचने के लिये यदि नील आदि जड़ पदार्थ का दृष्टान्त दोगे तो अन्योन्याश्रय दोष आयगा-देखो सुख दुःख आदि में ज्ञानपने की सिद्धि हो तब नील आदि में ज्ञानपना सिद्ध करने के लिये वे दृष्टान्तस्वरूप बन सकेंगे और उस दृष्टान्त के द्वारा नील आदि में ज्ञानत्व की सिद्धि होने पर वे नील आदि पुनः सुख दुःख आदि में ज्ञानत्व सिद्धि के लिये, दृष्टान्त बन सकेंगे। इस अन्योन्याश्रय दोष को हटाने के लिये सुख दुःख आदि में विना दृष्टान्त के ही ज्ञानत्व की सिद्धि मानी जावे तो हम कहेंगे
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