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विज्ञानातवादः
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नर्थान्तरपक्षयोरसम्भवात् । सा हि यद्यनुमानादर्थान्तरम् ; तदानुमानस्य न किञ्चित्कृतमित्यस्याभावः । अनुमानस्योत्पत्तिरिति सम्बन्धासिद्धिश्चानुपकारात् । उपकारे वाऽनवस्था । अयानर्थान्तरभूता क्रियते; तदानुमानमेव तेन कृतं स्यात् । तथा चानुमानं लिङ्ग लिङ्गजन्यत्वादुत्तरलिङ्गक्षणवत् । न च प्राक्तनानुमानोपादानजन्यत्वान्नानुमानं लिङ्गम् ; यतस्तदप्यनुमानमन्यतो लिङ्गाचे हि तदप्यनुमानं लिङ्ग तज्जन्यत्वादुतरलिङ्गक्षणवदिति तदवस्थं चोद्यम् । उत्तरमपि तदेवेति चेत्, अनवस्था स्यात् । अथ तथाप्रतीतेल्लिङ्गजन्यत्वाविशेषे किञ्चिल्लिङ्गमपरमनुमानम् ; तहि ज्ञानजन्यत्वाविशेषेपि किञ्चिज्ज्ञानमपरोऽर्थ इति किन्न स्यात् ? तथा च 'अर्थो ज्ञानं ज्ञानकार्यत्वादुत्तरउत्पत्ति अनुमान से भिन्न है तो वह अनुमान को पैदा नहीं कर सकेगी, तथा अभिन्न है तो दोनों एकमेक होवेंगे, तथा भिन्न पक्ष में यह भी दोष होगा कि उत्पत्ति और अनुमान का संबंध नहीं रहता है, विना सम्बन्ध के उत्पत्ति अनुमान का उपकार कर नहीं सकती, भिन्न रहकर ही उपकार करेगी तो अनवस्था दोष होगा, क्योंकि उत्पत्ति के लिये फिर दूसरी उत्पत्ति चाहिये, इस प्रकार अपेक्षा आती रहेगी, उत्पत्ति अनुमान से अभिन्न की जाती है ऐसा मानो तो उस हेतु से अनुमान ही किया गया। फिर ऐसा कह सकेगे कि अनुमान तो हेतु ही है, क्योंकि वह हेतु से पैदा हुआ है, जैसा कि उस हेतु से उत्तरक्षण वाला हेतु पैदा होता है। यदि कहो कि अनुमान के लिये अपना पूर्ववर्ती अनुमान ही उपादान हुआ करता है, अतः हेतु ही अनुमान हो जाय ऐसा दोष नहीं आता सो भी ठीक नहीं, देखिये वह पूर्व का अनुमान भी किसी अन्य लिंग से उत्पन्न हुआ है क्या ? यदि हुआ है तो पुनः हम कहेंगे कि वह अनुमान भी लिंग है, क्योंकि वह लिंग जन्य है, जैसे उत्तरवर्ती लिंग क्षण पूर्व लिंग क्षण से जन्य होनेके कारण लिंग ही कहलाता है, इसप्रकार पूर्वोक्त प्रश्न वैसे ही बने रहते हैं । तुम कहो कि उनका उत्तर भी पहले के समान दिया जाता है ? तब तो अनवस्था दोषसे छुटकारा नहीं होगा।
शंका-यद्यपि पूर्व हेतु से हेतु भी पैदा होता है और अनुमान भी पैदा होता है, तो भी किसी एक को तो अनुमान कहते हैं और दूसरे को हेतु कहते हैं ।
समाधान-तो फिर इसी प्रकार पदार्थ और ज्ञान के विषय में भी मानना पड़ेगा, अर्थात् ज्ञान से ज्ञान और पदार्थ उत्पन्न होते हैं तो भी एक को ज्ञान और दूसरे को पदार्थ ऐसा कहते हैं ऐसा मानना पड़ेगा, और ऐसा स्वीकार करने पर पदार्थ ज्ञान है क्योंकि वह ज्ञान का कार्य है ऐसी विपरीत बात बनेगी, जैसे उस ज्ञान
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