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विज्ञानाद्वैतवाद:
२३१ स्वभावताव्यतिरेकेणान्यस्तत्प्रकाशनव्यापारोऽस्ति । न च ज्ञानरूपत्वे नीलादेः सप्रतिघादिरूपता घटते। न च तद्र पतयाऽध्यवसीयमानस्य नीलादेः 'ज्ञानम्' इति नामकरणे काचिन्नः क्षतिः । नामकरणमात्रेण सप्रतिघत्वबाह्यरूपत्वादेरर्थधर्मस्याव्यावृत्त: । न च तद् पता ज्ञानस्यैव स्वभावः; तद्विषयत्वेनानन्यवेद्यतया चास्यान्तःप्रतिभासनात्, सप्रतिघान्यवेद्यस्वभावतया चार्थस्य बहि.प्रतिभासनात् । न च प्रतिभासमन्तरेणार्थव्यवस्थायामन्यन्निबन्धनं पश्यामः ।
यदप्यभिहितम्-निराकारः साकारो वेत्यादि; तदप्यभिधानमात्रम् ; साकारवादप्रतिक्षेपेण निराकारादेव प्रत्ययात् प्रतिकर्मव्यवस्थोपपत्तेः प्रतिपादयिष्यमाणत्वात् ।
अपने को और परवस्तुओं को जानना यही उस ज्ञानका-( अहं प्रत्यय का ) व्यापार याने क्रिया है, इससे भिन्न और किसी प्रकार की क्रियाएँ इसमें सम्भव नहीं हैं । जैसे दीपक में अपने और पर को प्रकाशित करना ही क्रिया है, और अन्य क्रिया नहीं, तथा-दीपक को प्रकाशित करने के लिये अन्य दीपक की जरूरत नहीं रहती वैसे ज्ञान को जानने के लिये अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं पड़ती है, ज्ञान में जो नील आदि पदार्थों का प्रतिभास है वह ज्ञानरूप ही है, उसमें जड़ के समान उठाने धरने आदि की क्रिया होवे सो भी बात नहीं है, ज्ञान जब नील को जानता है तब उसे भी नील कह देते हैं अर्थात् यह नील का ज्ञान है ऐसा नाम रख देते हैं, सो ऐसा नाम धर देने से हमें कुछ बाधा नहीं आती है, देखिये नाम करने से उस बाह्यवस्तु के काठिन्य प्रादि गुण, बाह्य में रहना, छेदन आदि में आ सकना आदि सारी बातें ज्ञान में भी आ जावें सो तो बात है नहीं, ज्ञान में पदार्थाकार होना एकमात्र धर्म नहीं है, बाह्य पदार्थ तो मात्र ज्ञान का विषय है, ज्ञान अनन्यवेद्य-अन्य से अनुभव में नहीं आने योग्य है, वह तो अन्त: प्रतिभास मात्र है, तथा पदार्थ प्रतिघात के योग्य अन्य से जानने योग्य एवं बाहर में प्रतिभासमान स्वरूप है, इस प्रकार पदार्थ
और ज्ञान में महान भेद है वे किसी प्रकार से भी एक रूप नहीं बन सकते हैं । ज्ञान में पदार्थों का प्रतिभास हुए बिना पदार्थों की व्यवस्था अर्थात् यह घट है यह पट है यह इससे भिन्न है इत्यादि पृथक् पृथक् वस्तुस्वभाव सिद्ध नहीं होता है । अहं प्रत्यय साकार है या निराकार है ऐसा पूछकर जो दोनों पक्षों का खण्डन किया है वह गलत है, क्योंकि हम स्वयं आपके द्वारा माने गये साकार वाद का निराकरण करने वाले हैं ज्ञान निराकार रहकर ही प्रत्येक वस्तु की पृथक् पृथक् व्यवस्था कर देता है, इस बात का प्रतिपादन आगे होगा। तथा आपने जो हमसे ऐसा पूछा है कि वह अहं
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