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प्रमेयकमलमार्तण्डे त्वादिति ? स्मृतिप्रमोषाभ्युपगमेन तु विपर्ययप्रत्याख्यानमयुक्तम् ; तस्यासिद्धरूपत्वात् ।
सार प्रवृत्ति नहीं होती, अतः अनिर्वचनीयार्थ ख्याति भी असत्य है। विपर्यय ज्ञानका विषय विपरीत ख्याति ही है, अर्थात् पुरुषसे विपरीत जो स्थाणु है उसमें "यह पुरुष है" ऐसी झलक आना विपर्यय ज्ञान है, इस ज्ञानका विषय स्थाणु ही है किन्तु उसका अवधारण नहीं होनेसे पुरुषका आकार प्रतीत होता है ।
* विपर्ययज्ञान प्रख्यात्यादिविचार समाप्त *
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