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सन्निकर्षवादः
शेषार्थज्ञत्वासम्भवः । बहुभिरेव ज्ञानस्तदिति चेत्, तेषां कि क्रमेण भावः, अक्रमेण वा ? क्रमभावे; नानन्तेनापि कालेनानन्तता संसारस्य प्रतीयेत-य एव हि सम्बन्धसम्बन्धवशाज् ज्ञानजनकोऽर्थः स एव तज्जनितज्ञानेन गृह्यते नान्य इति । अक्रमभावस्तु नोपपद्यते विनष्टानुत्पन्नार्थज्ञानानां वर्तमानार्थज्ञानकालेऽसम्भवात् । न हि कारणाभावे कार्य नामातिप्रसङ्गात् । न च बौद्धानामिव यौगानां विनष्टानु
रहेगा-तो ऐसी हालत में एक ज्ञान के द्वारा अशेष पदार्थों का ज्ञान होना असम्भव हो जायेगा।
भावार्थ-वैशेषिक सन्निकर्ष से महेश्वर को संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान होता है ऐसा मानते हैं, किन्तु पदार्थ तो अतीत अनागत रूप भी हैं, जब वह महेश्वर अतीत अनागत पदार्थों के साथ सन्निकर्ष करेगा तब वर्तमान के पदार्थों के साथ सन्निकर्ष नहीं बन सकेगा, अत: महेश्वर को एक साथ एक ज्ञान से त्रैकालिक वस्तुओं का ज्ञान नहीं हो सकने से महेश्वर सर्वज्ञ नहीं बन सकता है।
वैशेषिक-बहुत से ज्ञानों के द्वारा वह ईश्वर पदार्थों को जान लेगा।
जैन-तो क्या वह उन ज्ञानों द्वारा क्रम से जानेगा या अक्रम से जानेगा। क्रम से जानने बैठेगा तो अनंत काल तक भी वह संपूर्ण पदार्थों को नहीं जान पायेगा, जिसका जिससे संबंध हुआ है उसी का ज्ञान होकर उसी को वह जानेगा अन्य को नहीं अक्रम से जानना बनता नहीं, क्योंकि नष्ट हुए और अभी उत्पन्न नहीं हुए हैं ऐसे पदार्थों का सम्बन्ध वर्तमान काल में नहीं है। उनका ज्ञान भी नहीं है । कारण के अभाव में कार्य होता नहीं है, माना जावे तो अति प्रसङ्ग होगा। आप योग हो । आपके यहां बौद्ध की तरह नष्ट हुए तथा अनुत्पन्न ऐसे पदार्थों को ज्ञान का कारण नहीं माना है, अन्यथा आपका सिद्धान्त गलत ठहरेगा।
बौद्धों के यहां क्षणिकवाद होने से नष्ट हुए कारणों से कार्य होना माना है, वैसे यौगों के यहां नहीं माना है।
वैशेषिक-ईश्वर का ज्ञान नित्य है, अतः आप जैन के द्वारा दिये गये कोई भी दोष हम पर लागू नहीं होते हैं।
जैन-ऐसा भी कहना ठीक नहीं, कारण कि आपके द्वारा मान्य नित्य ईश्वर का हम आगे खण्डन करने वाले हैं। इस प्रकार वैशेषिक द्वारा माना हुआ सन्निकर्ष प्रमाण भूत सिद्ध नहीं होता है ।
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