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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना समानताके लिये निम्न गाथाओंका मिलान कीजिये --
त्रिलोकसार | ४५९/ ४६३ | ४७१ / ४७४ | ४७५ | ४८३ | ५२८ | ५२९ तिलोयपण्णत्ति | ८-१४९ / ८११ (१-१६३ ८-१०१ / ८-१६८ | ८-३५१ | ६८७ | ५४९
६ नर-तिर्यग्लोक यह अधिकार तिलोयपण्णत्तिमें मानुषलोक (४) और तिर्यग्लोक (५) इन दो स्वतन्त्र महाधिकारोंमें विभक्त पाया जाता है । इस अधिकारमें पहिलेले जम्बूद्वीपस्थ भरतादिक क्षेत्रों, हिमवदादि पर्वतों, पद्मादिक हृदों व उनसे निकलनेवाली गंगादिक नदियों, तथा मेरु पर्वत व भद्रशालादि वनोंका विस्तारादि बतलाया गया है। आगे जम्बू वृक्ष व शालगली वृक्ष और उनके परिवार वृक्षोंका उल्लेख करके क्षेत्रानुसार भोगभूमि और कर्मभूमियोंका विभाग बतलाया है । तत्पश्चात् यमकगिरि , हृदपंचक, कांचन शैल, दिग्गज पर्वत, गजदन्त पर्वत, वक्षार पर्वत व विभंग नदियां, इनके नामादिकका निर्देश करके ग्राम-नगरादिकका स्वरूप बतलाया गया है । फिर विदेह क्षेत्रमें वर्षा आदिका स्वरूप दिखाकर पांच मेरु सम्बन्धी तीर्थंकर व चक्रवर्ती आदिकोंकी जघन्य-उत्कृष्ट संख्या निर्दिष्ट की है । इससे आगे चक्रवर्तीकी सम्पदाका उल्लेख करके राजा-अधिराजा आदिके लक्षण बतलाते हुए ३२ विदेहों, विजयाधगिरिस्थ ११० विद्याधरनगरियों, विदेहक्षेत्रस्थ ३२ नगरियों तथा हिमवदादि पर्वतोंके ऊपर स्थित कूटोंके नामोंका निर्देश किया है । आगे चलकर अनेक करणसूत्रों द्वारा चाप, बाण, वृत्तविष्कम्भ तथा स्थूल व सूक्ष्म क्षेत्रफल निकाल कर निर्दिष्ट किया गया है।
तत्पश्चात् भरत व ऐरावत क्षेत्रोंमें प्रवर्तमान सुषम-सुषमादिक छह कालोंका प्रमाण और उनमें होनेवाले प्राणियोंकी आयु व उत्सेध आदिका प्रमाण बतलाते हुए प्रथमतः भोगभूमियोंकी प्ररूपणा की है । फिर चतुर्थ कालमें होनेवाले ६३ शलाकापुरुष (२४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती और ९-९ बलदेव नारायण व प्रतिनारायण ), ९ नारद और. ११ रुद्रोंकी प्ररूपणा करके शक राजाकी उत्पत्ति एवं कल्किका कार्य बतलाया गया है। इसके आगे उत्सर्पिणी कालके प्रवेशक्रमको दिखलाकर भरतादिक क्षेत्रोंमें सदा अवस्थित रहनेवाले कालोंका तथा द्वीप-समुद्रोके मध्यमें स्थित प्राकार एवं वेदिकादिकोंका वर्णन करते हुए जम्बूद्वीपकी प्ररूपणा समाप्त की गई है ।
आगे चलकर लवणसमुद्र व उसमें स्थित अन्तरद्वीपोंका निरूपण करते हुए धातकी व पुष्कर द्वीपों; मानुषोत्तर, कुण्डल एवं रुचक पर्वतों और उनके ऊपर स्थित कूटों, नन्दीश्वर द्वीप तथा अकृत्रिम जिनभवनोंकी प्ररूपणा की गई है । इस प्रकार इस अधिकारके पूर्ण होनेपर उक्त प्रन्थ समाप्त होता है ।
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