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________________ त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य ग्रंथोंसे तुलना ( ६३ ) असुररस महिस- तुरग-रथेम-पदाती कमेण गंधव्वा । णिच्चाणीय महत्तर महत्तरी छक्क एक्का य ॥ णाचा गरुडम-मयरं करभं खग्गी मिगारि- सिविगस्सं । पदमाणीयं सेसे सेसाणीया हु पुत्रं व ॥ त्रि. सा. २३२-३३. असुर म्मि महिस- तुरगा रह-करिणो तह पदाति गंधव्त्र । णच्चणया एदाणं महत्तरा छ महत्तरी एक्का ॥ णाचा गरुड-गदा मयट्टा खग्गि· सीह - सिविकस्सा | णागादीणं पढमाणीया बिदियाय असुरं वा ॥ ति. प. ३, ७८-७९ ३ व्यन्तरलोक अधिकारमें व्यन्तर देवोंके भेद, उनका शरीरवर्ण, चैत्यवृक्ष, व्यन्तरों के अवान्तरभेद, इन्द्रनाम, गणिकामहत्तरी, सामानिक आदि परिवारदेव, निवासद्वीप, प्रासाद, आयु और भवनपुरादि विभागका उसी प्रकार वर्णन पाया जाता है जैसा कि तिलोयपण्णत्तिके छठे अधिकार में किया गया है । ४ ज्योर्तिलोक अधिकार में पहिले ज्योतिषी देवोंके पांच भेदोंका निर्देश करके उनके संचारादि के प्ररूपणार्थ आदि व अन्तके सोलह-सोलह दीपोंके नामों का उल्लेख कर उनकी समस्त संख्याका प्रमाण बतलाया गया है । तत्पश्चात् जम्बूद्वीपादिकका विस्तार, उनकी आदिम मध्यम व बाह्य सूचियां, परिधि, बादर व सूक्ष्म क्षेत्रफल, जम्बूद्वीपप्रमाण खण्ड, लवणसमुद्रादिका जलस्वाद, उनमें जलचर जीवों की सम्भावना, मानुषोत्तर व स्वयम्प्रभादि पर्वत, अवगाहना और पृथिवी आदिक जीवोंका आयु प्रमाण, इन सबका कथन किया है' । आगे ज्योतिषी देवोंका जो अवस्थान ( निवासक्षेत्र ) बतलाया है वह तिलोयपण्णत्तिके ही समान है'। इसके लिये यहां जो निम्न गाथा दी गई है वह किसी प्राचीनतम ग्रन्थकी प्रतीत होती है उदुत्तरसत्तसर दस सीदी चदुदुगे तियचउक्के । तारिण-ससि-रिक्ख-बुहा सुक्क- गुरुंगार-मंदगदी ॥३३२ ॥ यह गाथा कुछ शब्द भेद के साथ सर्वार्थसिद्धि ( ४ - १२ ) में ' उक्तं च ' करके उद्घृत की गई है। यहां मात्र शब्दभेद ही है, अर्थभेद नहीं हुआ । परन्तु तत्त्वार्थराजवार्तिक में वही गाथा ऐसे पाठभेदों के साथ उद्धृत की गई है कि जिससे वहां नक्षत्र, बुध, १ इन सब विषयों की प्ररूपणा तिलोयपण्णत्तिके तिर्यग्लोक नामक पांचवें अधिकार में विस्तारपूर्वक की गई है । २ ति. प. म. ७गा. ३६, ६५, ८३, ८९, ९३,९६, ९९, १०४. २ वदुत्तरसत्तसया दस सीदिच्चदृतिगं च दुगचदुक्कं । तारा-रवि-ससि-रिक्खा बुह भग्गव-गुरु-अंगिरार-सणी || त. रा. ४, १२.१०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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