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________________ त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य ग्रन्थोंसे तुलना (४५) 'ते' पदसे है । परन्तु तिलोयपण्णत्तिकी गा. ६१९ में आया हुआ वह 'ज' पद साकांक्ष ही रह गया है । इसके अतिरिक्त उक्त गाथामें 'अणंतखुत्तो' पद दो बार प्रयुक्त हुआ है जो अनावश्यक है । इससे अनुमान किया जाता है कि ति. प. की गा. ६१९ का उत्तरार्ध भगवती-आराधनाकी गा. १५८१ से लिया गया है । भगवती आराधनाकी गा. १००३ में क्षपकको लक्ष्य करके देहके बीज, निष्पत्ति, क्षेत्र, आहार, जन्म, वृद्धि, अवयव, निर्गम, अशुचि, व्याधि एवं अध्रुवताके वर्णन करनेकी प्रतिज्ञा की गई है । तदनुसार ही क्रमसे उनकी प्ररूपणा करते हुए 'निष्पत्ति' प्रकरणमें निम्न गाथायें दी गई हैं-- कालगदं दसरत्तं अच्छदि कलुसीकदं च दसरतं । थिरभूदं दसरत्तं अच्छदि गब्भम्मि तं बीयं ॥ १००७. तत्तो मासं बुब्बुदभूदं अच्छदि पुणो वि घणभूदं । जायदि मासेण तदो मंसप्पेसी य मासेण ॥ १००८. मासेण पंचपुलगा तत्तो हुँति हु पुणो वि मासेण । अंगाणि उबंगाणि य णरस्स जायंति गम्भमि ॥ १००९. मासम्मि सत्तमे तस्स होदि चम्म-णह-रोमणिप्पत्ती । फंदणमट्टममासे णवमे दसमे य णिग्गमणं ॥ १०१०. इन गाथाओंका प्रभाव ति. प. की गा, ६२० से ६२२ पर (६२२ का उत्तरार्ध भगवती आराधनाकी गा. १०१० में ज्योंका त्यों हैं) पर्याप्त रूपमें पड़ा हुआ है । भगवती-आराधनाकी गा. १००३ में की गई प्रतिज्ञाके निर्बहनार्थ उपर्युक्त गाथाओंकी स्थिति जैसी वहां अनिवार्य है वैसी तिलोयपण्णत्तिमें नहीं है, क्योंकि, इनके विना यहां प्रकरण में कोई आपाततः विरोध नहीं था। इसके अतिरिक्त भगवती-आराधनाकी उन ( १००७,१००९) गाथाओंमें 'बीय' और ' णरस्स' पद भी ध्यान देने योग्य हैं । ये दोनों पद यहां आवश्यक थे । परन्तु तिलोयपण्णत्तिमें ऐसे कोई पद वहां नहीं प्रयुक्त किये गये। हां, वहां गा. ६२० में प्रयुक्त 'पुव्वगदपावगुरुगो' विशेषण पदसे विशेष्य पदके रूपमें 'नर' पदका प्रहण येन केन प्रकारेण किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त निम्न गाथायें भी यहां ध्यान देने योग्य हैं। इनमेंसे गा. ८८९, ९१६, ९१९, ९२२ और १०२० में कोई विशेष परिवर्तन नहीं है । भ.आरा./८८६-७ / ८८९ | ९०४ | ९०८ ९१६ |९१९ / ९२२ १०१२१०२० ति. प. | ४-६२८| ४-६५९ | ४-६३०/४-६३१ | ४-६३४ ४-६२७/४-६२५/४.६२४|४-६२३ | - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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