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________________ (१२) त्रिलोकप्राप्तिकी प्रस्तावना ये तीन समुद्र चूंकि कर्मभूमिसम्बद्ध हैं, अतः इनमें तो जलचर जीव पाये जाते हैं, किन्तु वे अन्य किसी और समुद्रमें नहीं पाये जाते। . .. बागे उन्नीस पक्षोंका उल्लेख करके उनमें द्वीप-समुद्रोंके विस्तार, खंडशलाकाओं, क्षेत्रफल, सूचीप्रमाण और आयाममें जो उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है उसका गणितप्रक्रियाके द्वारा बहुत विस्तारसे विवेचन किया है। पश्चात् चौंतीस भेदोंमें विभक्त तिथंच जीवोंकी संख्या, आयु, आयुबन्धक भाव, योनियां, सुख-दुख, गुणस्थानादिक, सम्यक्त्वग्रहणके कारण और पर्यायान्तर प्राप्तिका कथन किया गया है। फिर उक्त चौंतीस प्रकारके तिर्यचोंमें अल्पबद्दुत्व और अवगाहनाविकल्पोंको बतला कर इस महाधिकारको समाप्त किया है। ६-व्यन्तरलोक- महाधिकारमें १०३ पद्य हैं । इसमें सत्तरह अन्तराधिकारों के द्वारा न्यन्तर देवोंका निवासक्षेत्र, उनके भेद, चिह्न, कुलभेद, नाम, दक्षिण-उत्तर इन्द्र, आयु, आहार, -उश्छ्वास, अवधिज्ञान, शक्ति, उत्सेध, संख्या, जन्म-मरण, आयुबन्धक भाव, दर्शनग्रहणकारण और गुणस्थानादि विकल्पोंकी प्ररूपणा की गई है। इसमें कुछ विशेष बातोंको ही बतला कर शेष प्ररूपणा तृतीय महाधिकारमें वर्णित भवनवासी देवोंके समान बतला दी गई है । . ज्योतिर्लोक- महाधिकारमें ६१९ पथ हैं । इसमें ज्योतिषी देवोंका निवासक्षेत्र, उनके भेद, संख्या, विन्यास, परिमाणं, चर ज्योतिषियोंकी गति, अचर ज्योतिषियोंका स्वरूप, . 'आयु, आहार, उच्छ्वास, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति, एक समयमें जीवोंकी उत्पत्ति मरण, आयुबन्धक भाव, सम्यग्दर्शनग्रहणके कारण और गुणस्थानादिवर्णन, इन सत्तरह अन्तराधि. 'कारोके द्वारा ज्योतिषी देवोंको विस्तृत प्ररूपणा की गई है। निवासक्षेत्रकी प्ररूपणामें बतलाया है कि एक राजु लम्बे-चौड़े और ११० योजन मोटे क्षेत्रों ज्योतिषी देवोंका निवास है । चित्रा पृथिवीसे ७९० योजन ऊपर आकाशमें तारागण, इनसे १० यो. ऊपर सूर्य, उससे ८. यो. ऊपर चन्द्र, उससे ४ यो. ऊपर नक्षत्र, उनसे ५ यो. ऊपर बुध, उससे ३ यो. ऊपर शुक्र, उससे ३ यो. ऊपर गुरु, उससे ३ यो. ऊपर मंगल और उससे ३ यो. ऊपर जाकर शनिके नगर (विमान ) हैं। ये नगरस्थल ऊर्ध्वमुख अर्थ गोलकके आकार हैं। इनमें चन्द्रनगरस्थलोंका उपरिम तलविस्तार ५६ यो., सूर्यनगरस्थलोंका ४८ यो. , नक्षत्रनगरस्थलोंकायो ., बुधका है यो. , शुक्रका । यो. , गुरुका कुछ कम ! यो. , मंगलका है यो. और शनि का ? यो. है। ताराओंके नगरस्थलोंका उपरिम तलविस्तार २०००, १५००, १००० और ५०० धनुष प्रमाण है । इन नगरस्थलोंका बाहल्य अपने अपने विस्तारसे आधा है । वे सब देव इन नगरस्थलोंमें सपरिवार आनन्दसे जाते हैं । इनमें चन्द्रनगरस्थलोंको सोलह हजार देवों से चार चार हजार देव क्रासे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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