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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावमा भाग मात्र है । इनमेंसे प्रत्येक पातालके अधस्तन त्रिभागमें वायु, मध्यम त्रिभागमें जल-वायु
और उपरिम त्रिभागमें केवल जल है । इन पातालोंकी वायु स्वभावसे शुक्ल पक्षमें प्रतिदिन २२२२३ योजन मात्र वृद्धिको और कृष्ण पक्षों उतनी ही हानिको प्राप्त होती है । इस प्रकार पूर्णिमाके दिन अधस्तन दो त्रिभागोंमें वायु और उपरिम एक त्रिभागमें जल रहता है, तथा अमावस्याके दिन उपरिम दो त्रिभागोमें जल और अधस्तन त्रिभागमें वायु रहती है। यही एक कारण समुद्रके जलकी वृद्धि व हानि अर्थात् ज्वारभाटाका यहां बतलाया गया है ।
___आगे चलकर लवण समुद्रके अभ्यन्तर भागमें २१ और उसके बाह्य भागमें भी २४ इस प्रकार कुमानुषोंके ४८ अन्तर्वीप बतलाये गये हैं। इनमें रहनेवाले कुमानुषोंकी
शरीराकृति कुत्सित होती है । जैसे- किसीका एक ही जंघायुक्त होना तथा किसीके पूंछ व 'सीगोंका होना इत्यादि। मन्दकषायी, प्रियभाषी, कुटिल, धर्मके फलको खोजनेवाले, मिथ्या देवोंकी भक्ति तत्पर तथा भोजनके क्लेशको स नेवाले मिथ्यादृष्टि जीव इन द्वीपोंमें उत्पन्न होते हैं ।
धातकीखण्ड द्वीपका वर्णन जगती, विन्यास, भरतक्षेत्र, उसमें कालमेद, हिमवान्, हैमवत, महाहिमवान्, हरिवर्ष, निषध, विदेह, नील, रम्यक, रुक्मि, हैरण्यवत, शिखरी और ऐरावत, इन १६ अन्तराधिकारों द्वारा २५२७.२७१७ गाथाओंमें किया गया है, जो कुछ विशेषताओंको छोड़ प्रायः जम्बूद्वीपके ही समान है। गा. २७१८-२७४३ में कालोद समुद्रकी प्ररूपणा है जो लवण समुद्रके ही समान है । पुष्कराध द्वीपका वर्णन भी उपर्युक्त १६ अन्तराधिकारों द्वारा घातकीखण्ड द्वीपके समान २७४४.२९२४ गाथाओंमें किया गया है । यहां जगतीके स्थानमें मानुषोत्तर पर्वत है।
आगे सामान्य, पर्याप्त, मनुष्यनी और अपर्याप्त, इन चार प्रकारके मनुष्यों की संख्या, उनमें क्षेत्रकी अपेक्षा अल्पबहुत्व, गुणस्थानादि, गति-आगति, योनि, सुख-दुख, सम्यक्त्वग्रहणकारण और मुक्ति प्राप्त करनेवाले जीवोंका प्रमाण बतला कर इस महाधिकारको पूर्ण किया गया है।
'५ तिर्यग्लोक- महाधिकारमें ३२१ पद्य हैं। इसमें गद्यभाग ही अधिक है । इस महाधिकारमें सोलह अन्तराधिकारों के द्वारा तिर्यग्लोकका विस्तृत वर्णन किया गया है । यहाँ स्थावरलोकका प्रमाण बतलाते हुए यह कहा है कि जहां तक आकाशमें धर्म एवं अधर्म द्रव्यके निमित्तसे होनेवाली जीव और पुद्गलकी गति व स्थिति सम्भव है उतना सब स्थावरलोक है । उसके मध्यमें सुमेरु पर्वतके मूलसे एक लाख योजन ऊंचा और एक राजु लम्बा-चौड़ा तिर्यक् प्रस-लोक है, जहां तिथंच त्रस जीव भी पाये जाते हैं।
तिर्यग्लोकमें परस्पर एक दूसरको चारों ओरसे वेष्टित करके स्थित समवृत्त असंख्यात (२५ कोड़ाकोडि उद्धार पल्यों के बराबर) द्वीप-समुद्र हैं । उन सबके मध्यमें एक लाख योजन
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