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________________ ८६० ] तिलोयपण्णत्ती [ ८. ६२१ चंदाभा सूसभा देवा आइञ्चवण्डिविचाले । सेअक्खा खमकर णाम' सुरा' वहिमरुणम्मि' ॥ ६२१ विसकोटा कामधरा विश्वाले अरुणगद्दतोयाणं । निम्माणराजदिसयंतर क्खिमा गद्दतोयतुसिताणं ॥ ६२२ तुतिब्याबाहाणं अंतरदो अप्पसव्वरक्खसुरा । मरुदेवा वसुदेवा तह अन्वाबाहरिट्ठमामि ॥ ६२३ सारस्सदरिद्वाणं विश्वाले अस्सविस्तणामसुरा । सारस्वआइच्या पत्तेक्कं होंति सत्तसया ॥ ६२४ ७०० । वही वरुणा देवा सत्तसहस्वाणि सत्त पत्तेक्कं । णवजुराणवसहस्सा तुसिदसुरा गद्दतोया वि ॥ ६२५ ७००७ । ९००९ । ग्वावाद्दारिट्ठा एकरस सदस्य एक्करसजुत्ता । अणलाभा वण्डिसमा सूराभा गडतोयसारिच्छा ॥ ६२६ ११०११ । ७००७ । ९००९ । मन्त्रावासरिच्छा चंदामसुरा" हवंति सच्चाभा' । अजुदं तिष्णि सहस्सं तेरसजुत्ताए संखाए ॥ ६२७ ११०११ । १३०१३ | आदित्य और वह्निके अन्तरालमें चन्द्राभ और सूर्याभ (सत्याभ), तथा वह्नि और अरुणके अन्तराल में श्रेयस्क और क्षेमंकर नामक देव शोभायमान हैं ।। ६२१ ॥ अरुण और गर्दतोय अन्तरालमें वृषकोष्ठ ( वृषभेष्ट ) और कामधर ( कामचर ) तथा गर्दतोय और तुषित अन्तरालमें निर्माणराज (निर्माणरज ) और दिगंतरक्षित देव हैं ॥ ६२२ ॥ तुषित और अव्यात्रा के अन्तराल में आत्मरक्ष और सर्वरक्ष देव, तथा अव्याचाध और अरिष्टके अन्तरालमें मरुत् देव और वसु देव हैं ॥ ६२३ ॥ सारस्वत और अरिष्ट अन्तरालमें अश्व और विश्व नामक देव स्थित हैं । सारस्वत और आदित्यमेंसे प्रत्येक सात सौ हैं ॥ ६२४ ॥ ७०० । वह्नि और अरुण से प्रत्येक सात हजार सात तथा तुषित और गर्दतोयमें से प्रत्येक हजार नौ हैं ॥ ६२५ ।। ७००७ । ९००९ । अध्याबाध और अरिष्ट ग्यारह हजार ग्यारह हैं । अनलाभ वह्नि देवोंके समान और सूर्या गर्दतोयोंके सदृश हैं ॥ ६२६ ॥ ११०११ | ७००७ । ९००९ । चन्द्रा देव अन्याबाधोंके सदृश तथा सत्याम तेरह हजार तेरह होते हैं ॥ ६२७ ॥ ११०११ । १३०१३ | १ द ब सुरो. २ द तिमि व म्हिए मंति ५ व व चंदानापुर ६ द ब सेखामी. Jain Education International ३ द ब 'रक्खिणी. For Private & Personal Use Only ४ द व तुरिद. www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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