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________________ -८.५५१] अट्ठमो महाधियारों 1८५१ संखेजसदं वरिसा वरविरहं आणदादियच उक्के । भणिदं कप्पगदाणं एकारसभेददेवाणं ॥ ५४६ कप्पातीदसुराणं उक्कस्सं अंतराणि पत्तेक्कं । संखेज्जसहस्साणिं वासा गेवज्जगउणवण्हं पि ॥ ५४७ पल्लासंखेज्ज सो अणुद्दिसाणुत्तरेसु उक्कस्सं । सब्वे अवरं समयं जम्ममरणाण अंतरयं ॥५४८. दुसु दुसु तिचउक्केसु य सेसे जगणंतराणि चवमि । सत्तदिगपक्खमासा दुचउछम्मासया कमसो॥ दि । १५ । मा १।२।४।६। इय जम्मणमरणाणं उकस्से होदि अंतरपमाणं । सव्वेसु कप्पेसुं जहण्ण एकेकसमभो य ॥ ५५० . पाठान्तरम् । । जम्मणमरणाणंतरकालो सम्मत्तो। .. उवहिउवमाणजीवी वरिससहस्सेण दिव्वअमयमयं । भुंजदि मणसाहारं णिरुवमयं तुष्टिपुट्टिकरं ॥ ५५॥ .................................. और आनतादिक चार कल्पोंमें संख्यात सौ वर्ष प्रमाण है । यह उत्कृष्ट विरह इन्द्रादिरूप ग्यारह भेदोंसे युक्त कल्पवासी देवोंका कहा गया है ॥ ५४३-५४६ ॥ कल्पातीत देवोंमें नौ ही अवेयोंमेंसे प्रत्येको उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष प्रमाण है ॥ ५४७॥ . वह उत्कृष्ट अंतर अनुदिश और अनुत्तरोंमें पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । जन्ममरणका जघन्य अन्तर सब जगह एक समयमात्र है ॥ ५४८ ॥ दो, दो; त्रिचतुष्क अर्थात् चार, चार, चार; इन कल्पोंमें तथा शेष 7वेयादिकोंमें जन्म व मरणका अन्तर क्रमशः सात दिन, एक पक्ष, एक मास, दो मास, चार मास और छह मास प्रमाण है ।। ५४९ ॥ सौ. ई. ७ दिन, स. मा. १ पक्ष, ब्रम्हादिक चार १ मास, शुक्रादिक चार २ मास, आनतादिक चार ४ मास, शेष अवेयादि ६ मास । इस प्रकार सब कयोंमें जन्म-मरणका यह अन्तरप्रमाण उत्कृष्ट है, जघन्य अन्तर सब कल्पोंमें एक एक समय है ॥ ५५० ॥ पाठान्तर। जन्म-मरणका अन्तरकाल समाप्त हुआ। एक सागरोपम काल तक जीवित रहनेवाला देव एक हजार वर्षमें दिव्य, अमृतमय, अनुपम और तुष्टि एवं पुष्टि कारक मानसिक आहारका भोजन करता है ॥ ५५१ ॥ .. ..१६ बसा. २९ ब नहण्ण.. ३द ब जणंतराणि भवणाणि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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