________________
८४८] तिलोयपण्णत्ती
[८.५४१होदि, भूमी अट्ठाइजसागरोवमाणि । भूमीदो मुहमवणिय' उच्छेहेण भागे हिदे तत्य एक्कसागरोवमस्स पण्णारसभागोवरिमवड्डी' होदि | .. एमिच्छिदपत्थडसंखाए' गुणिय मुहे पक्खित्ते विमलादीण तीसण्हं पत्थडाणमाउआणि होति । तेसिमेसा संदिट्री
१७ |१९|२१|२३|२५|२७|२९| ३३ ३३ | • |३०|३०|३०|३०|३०|३०|
३०/३०/३:/१०/३०/
१२/२/३१.३० | १० ||3|
|
||३|सा | सणक्कुमारमाहिदे सत्त पत्थ डा। एदेसिमाउवपमाणमाणिजमाणे मुहमलाइज- ५
है । यहां अर्ध सगरोपम मुह और भूमि अढ़ाई सागरोपम ( आन्तिम पटलकी उत्कृष्ट आयु ) है । भूमिमेंसे मुखको कम करके शेषमें उत्सेधका (एक कम गच्छका) भाग देनेपर एक सागरोपमका पन्द्रहवां भाग उपरिम वृद्धिका प्रमाण आता है।
स्पष्टार्थ-- सौधर्मयुगलमें समस्त पटल ३१ हैं। इनमेंसे प्रथम पटलमें घातायुष्ककी अपेक्षा उत्कृष्ट आयु ३ सा. और अन्तिम पटलमें ५ सा. है। ५ -३ (३१- १) = ६० = १५ हानि-वृद्धि ।
___ इसे ( एक कम ) इच्छित पटलकी संख्यासे गुणा कर मुहमें मिला देनेपर विमलादिक तीस पटलोंमें आयुका प्रमाण निकलता है ।
उदाहरण- इच्छित पटल १५ रुचक; १५ ४ (१५ - १)+ ई = ३४ सागरोपम ।
___ उनकी यह संदृष्टि है- विमल १७, चन्द्र १६, वल्गु ३१, वीर ३३, अरुण ३५, नन्दन ३४, नलिन २९, कंचन ३१, रुधिर ३३, चन्द ३५, मरुत् ३७, ऋद्धीश ३:, वैडूर्य ११, रुचक १३, रुचिर ५५, अंक ३५, स्फटिक १४, तपनीय ५१, मेघ ५३, अभ्र ५५, हारिद्र ३७, पद्ममाल ५९, लोहित ६१, वज्र ६३, नन्द्यावर्त ६५, प्रभंकर ६४, पिष्टक ३६, गज ३१, मित्र ३३, प्रभ ३५ = ५ सागरोपम ।।
सनत्कुमार-माहेन्द्रमें सात पटल हैं। इनमें आयुप्रमाणको लानेके लिये मुख अढ़ाई
१द ब मुहववणिय. २द ब बद्ध. ३दब पण्णारससागरोवमहि. ४दब पंचदसंखाए.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org