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अमो महाधि
mari faceारा नियणिय उच्छे पंचमविभागा । विव्यारद्धं गाढं पत्तेक्कं सव्वपासादे || ३७३ पासादाणं मज्झे सपादपीढा यकट्टिमायारा । सिंहासणा विसाला वरस्य गमया विरायंति ॥ ३७४ सिंहासणाण सोहा जा एाणं विचित्तरूवाणं । ण य सक्का वोतुं मे पुण्णफलं एत्थ पच्चकखं ॥ ३७५ सिंहासनारूढा सोलसवरभूसणेहि सोहिल्ला | सम्मत्तरयणसुद्धा सच्चे इंदा विरायंति ॥ ३७६ पुन्वज्जिदाहि सुचरिदकोडीहि संचिदाए लच्छीए सकादीर्ण उमा का दिन णिरुवमागाए ॥ ३७७ देवीहिं पडिदेहिं सामाणियहुदिदेव संवेहिं । सेविते गिच्चं इंदा वरछत्तचमरधारीहिं ॥ ३७८ सद्विसहसम्भहियं एकं लक्खं हुवंति पत्तेक्कं । सोइम्मीसाणिदे अटुट्टा अग्गदेवीओ ॥ ३७९
१६०००० । ८ ।
अग्गमहिसीओ अहं माहिंदसणक्कुमारइंदागं । बाहत्तरं सहस्सा देवीओ होंति पत्तेक्कं ॥ ३८०
८ | ७२००० ।
इन प्रासादों का विस्तार अपने अपने उत्सव के पांचवें भागप्रमाण है । सब प्रासादो में से प्रत्येकका अवगाह विस्तारसे आधा है ॥ ३७३ ॥
प्रासादों के मध्य में पादपीठसे सहित, अकृत्रिम आकारवाले, विशाल और उत्तम रत्नमय सिंहासन विराजमान हैं ॥ ३७४ ॥
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विचित्र रूपवाले इन सिंहासनों की जो शोभा है उसको कहनेके लिये मैं समर्थ नहीं हूं । यहां पुण्यका फल प्रत्यक्ष है ॥ ३७५ ॥
सिंहासनपर आरूढ़, सोलह उत्तम भूत्रगोंसे शोभायमान, और सम्यग्दर्शनरूपी रत्नसे शुद्ध सब इन्द्र विराजमान हैं ॥ ३७६ ॥
पूर्वोपार्जित करोड़ों सुचरित्रोंसे प्राप्त हुई शक्रादिकों की अनुपम लक्ष्मीको कौनसी उपमा ३७७ ॥
दी जाय
उत्तम छत्र व चमरोंको धारण करनेवाली देवियों, प्रतीन्द्रों और सामानिक आदि देवसमूहों द्वारा इन्द्रोंकी नित्य ही सेवा की जाती है ॥ ३७८ ॥
सौधर्म और ईशान इन्द्रमेंसे प्रत्येकके एक लाख साठ हजार देवियां तथा आठ आठ अग्रदेवियां होती हैं ॥ ३७९ ॥ देवी १६००००, अग्रदेवी ८ ।
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माहेन्द्र और सानत्कुमार इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके आठ अग्रमहिषियां तथा बहत्तर हजार देवियां होती हैं ॥ ३८० ॥ अग्रमहिषी ८, देवी ७२००० ।
१ द व यकहिमायाय. २ द ब गे, ३ द ब पुण्णपदं.
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