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तिलोयपण्णत्ती
[८.३६६सदणउदिसीदिसत्तरि पण्णासं चाल तीस होंति कमा । जोयणया वित्थारा गोउरदाराण पत्तेकं ॥ ३६६
१०० । ९० । ८० । ७० । ५० । ४० । ३. । रायंगणबहुमज्झे एकेकपहाणदिवपासादा । एकेकेसि इंदे णियणियइंदाण णामसमा ॥ ३६७ धुन्वंतधयवदाया मुत्ताहलहेमदामकमणिज्जा । वररयणमत्तवारणणाणाविहसोडसाभरणा ॥ ३६८ दिप्पंतरयणदीया वज्जकबाडेहिं सुंदरदुवारा । दिव्यचरधूवसुरही सेम्जास गपहुदिपरिपुण्णा ॥ ३६९ सत्तट्टणवदसादियविचित्तभूमीहिं भूसिदा सब्वे । हुव्बंति रय गखचिदा सोहंते सासयसरूवा ॥ ३७० छस्सयपंचसयाणि पण्णुत्तर चउसयाणि उच्छेहो । एदाणं सक्कहुगे दुइंदजुगलम्मि' बम्हिदे ॥ ३७१
६०० । ५०० । ४५० । चतारिसय पणुत्तरतिषिणसया केवला य तिणि सया । सो लंतविंदतिदए भागदपहुदीसु दुसयपणासा ॥
४०० । ३५० | ३००। २५० ।
उपयुक्त स्थानोंमें गोपुरद्वारों से प्रत्येकका विस्तार क्रमसे सौ, नब्बे, अस्सी, सत्तर, पचास, चालीस और तीस योजन प्रमाण है ॥ ३६६ । सौ. ई. १००, सान. मा. ९०, अ. ८०, ला ७०, म. ५०, सह. ४०, आनतादि ३० ।
राजांगणके बहुमध्य भागमें एक रक इन्द्र का अपने अपने इन्द्रों के नामोंके समान एक एक प्रधान दिव्य प्रासाद है ॥ ३६७ ॥
सब प्रासाद फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे सहित, मुक्ताफल एवं सुवर्णकी मालाओंसे कमनीय, उत्तम रत्नमय मत्तवारणोंसे संयुक्त, नाना प्रकारके सोलह आभरणोंवाले, चमकते हुए रत्नदीपकोंसे सुशोभित, वज्रमय कपाटोंसे सुन्दर द्वारोंवाले, दिव्य उत्तम धूपसे सुगंधित, शय्या व आसन आदिसे परिपूर्ण और सात, आठ, नौ एवं दश, इत्यादिक विचित्र भूमियोंसे भूषित हैं । शाश्वत स्वरूपसे युक्त ये प्रासाद रत्नोंसे खचित होते हुए शोभायमान हैं ॥३६८-३७०॥
शक्रद्विक, सानत्कुमार-माहेन्द्र युगल और ब्रह्मेन्द्रके इन प्रासादोंका उत्सेध क्रमशः छह सौ, पांच सौ और चार सौ पचास योजन प्रमाण है ॥ ३७१ ॥
सौ. ई. ६००, सान. मा. ५००, ब्र. ४५. यो.। वह प्रासादोंका उत्सेध लांतवेन्द्रादि तीनके क्रमसे चार सौ, तीन सौ पचास और केवल तीन सौ तथा आनतेन्द्रादिकोंके दो सौ पचास योजन प्रमाण है ॥ ३७२ ॥
लां. ४००, म. ३५०, सह. ३००, आनतादि २५० यो.।
१९ बदलम्मि. १६ म्हिदे वा.
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