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________________ ८१२] - तिलोयपण्णत्ती [८. २९२सम्वेसु दिगिंदाणं सामंतसुराण तिणि परिसाओ। णियणियदिगिंदपरिसासरिसाओ हवंति पत्ते ॥ २९५ सोमादिदिगिंदाणं सत्ताणीयाणि होति पत्तेक्कं । अट्ठावीससहस्सा पढमं सेसेसु दुगुणकमा ॥ २९५ पंचत्तीसं लक्खा छप्पण्णसहस्सयाणि पत्तेकं । सोमादिदिगिदाणं हवेदि वसहादिपरिमाणं ॥ २९५ ३५५६०००। दोकोडीओ लक्खा अडदाल सहस्सयाणि बाणउदी। सत्ताणीयपमाणं पत्तेक लोयपालाणं ॥ २९५ २४८९२००० । भभियोगपइण्णयकिब्विासिया होति लोयपालाणं | ताण पमाणणिरूवणउवएसा संप पणट्ठा ॥ २९६ छल्लक्खा छासट्ठीसहस्सया छस्सयाणि छासट्ठी । सक्कस्स दिगिंदाणं विमाणसंखा य पसेकं ॥ २९७ ६६६६६६। तेसु पहाणविमाणा सयंपहारिट्ठजलपहा णामा । वग्गूपहो य कमसो सोमादियलोयपालाणं ॥ २९८ इय संखाणामाणि सणक्कुमारिंदबम्हइंदेसुं । सोमादिदिगिदाणं भणिदाणिं वरविमाणेसं ॥ २९९ ६६६६६६। सब लोकपालोंके सामन्त सुरोंके तीनों पारिषदों से प्रत्येक अपने अपने लोकपालोंके पारिषदोंके सदृश हैं (?) ॥ २९२ ॥ सोमादि लोकपालोंके जो सात सेनायें होती हैं उनमेंसे प्रत्येक प्रथम कक्षामें अट्ठाईस हजार और शेष कक्षाओंमें दुगुणित क्रमसे युक्त हैं ॥ २९३ ॥ सोमादिक लोकपालों से प्रत्येकके वृषभादिका प्रमाण पैंतीस लाख छप्पन हजार है ॥ २९४ ॥ ३५५६०००।। लोकपालों से प्रत्येकके सात अनीकोंका प्रमाण दो करोड़ अड़तालीस लाख बानबै हजार है ॥ २९५ ॥ २४८९२०००। लोकपालोंके जो आभियोग्य, प्रकीर्णक और किल्विपिक देव होते हैं उनके प्रमाणके निरूपणका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ॥ २९६ ॥ सौधर्म इन्द्रके लोकपालों से प्रत्येकके विमानोंकी संख्या छह लाख छ्यासठ हजार छह सौ छ्यासठ है ॥ २९७ ॥ ६६६६६६ । उन विमानोंमें सोमादि लोकपालोंके क्रमसे स्वयंप्रभ, अरिष्ट, जलप्रभ और वल्गुप्रभ नामक प्रधान विमान हैं ॥ २९८ ॥ सनत्कुमार और ब्रम्हेन्द्रके सोमादि लोकपालोंके उत्तम विमानोंकी यही संख्या और नाम कहे गये हैं ॥ २९९ ॥ ६६६६६६ । १दब दिगिंदपरिसाओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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