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तिलोयपण्णत्ती
[-८. २७७
भभियोगाणं अविइदेवो चेटेदि दक्खिगिंदेसं । बालकगामो उत्तरइंदेसुं पुष्फदंतो य ॥ २७७ सकदुगम्मि य वाहणदेवा' पुरावदणाम हाथि कुव्वति । विकिरियानो लक्खं उच्छेहं जोयणा दीहं ।
एदाणं बत्तीसं होंति मुहा दिव्यरयणदामजुदा । पुह पुह रुणंति किंकिणिकोलाहलसद्दकयसोहा ॥ २७९ एकेकमुहे चंचलचंदुज्जलचमरचारुरूबम्मि : चत्तारि होति दंता धवला वररयगभरखचिदा ॥ २८० एकेकाम्म विसागे एकेकसरोवरो विमलवारी। एकेकसरवरम्मि य एकेक कमलवणसंडा ॥ २८॥ एकेककमलसंडे बत्तील विकस्सरा महाप उमा । एक्केकमहापउमं एकेकजोयणं पमाणे ॥ २८२ वरकंचणकयसोहा वरपउमा सुरविकुब्वणवलेणं । एकेकमहापउमे णाडयसाला य एकेका ॥ २८३ एकेक्काए तीए बत्तीस वरच्छरा पणचंति । एवं सत्ताणीया णिहिट्टा बारसिंदाणं ॥ २८४ पुद पुह पइण्णयाणं अभियोगसुराण किब्बिसाणं च । संखातीदपमाणं भणि सन्चेसु इंदागं ॥ २८५
दक्षिण इन्द्रोंमें आभियोग देवोंका अधिपति देव बालक नामक और उत्तर इन्द्रोंमें इनका अधिपति पुष्पदन्त नामक देव होता है ॥ २७७ ॥
सौधर्म और ईशान इन्द्रके वाहन देव विक्रियासे एक लाख उत्सेध योजन प्रमाण दीर्य ऐरावत नामक हाथीको करते हैं ॥ २७८ ॥ १००००० ।
इनके दिव्य रत्नमालाओंसे युक्त बत्तीस मुख होते हैं जो घंटिकाओंके कोलाहल शब्दसे शोभायमान होते हुए पृथक् पृथक् शब्द करते हैं ॥ २७९ ॥
चंचल एवं चन्द्रके समान उज्ज्वल चामरोंसे सुन्दर रूपवाले एक एक मुखमें रत्नोंके समूहसे खचित धवल चार दांत होते हैं ॥ २८० ॥
एक एक विषाण ( हाथी दांत ) पर निर्मल जलसे युक्त एक एक सरोवर होता है । एक एक सरोवर में एक एक उत्तम कमल-बनखण्ड होता है ॥ २८१ ॥
__ एक एक कमलखण्डमें विकसित बत्तीस महापद्म होते हैं, और एक एक महापद्म एक एक योजन प्रमाण होता है ॥ २८२ ॥
देवोंके विक्रिया बलसे वे उत्तम पद्म उत्तम सुवर्णसे शोभायमान होते हैं। एक एक महापद्मपर एक एक नाट्यशाला होती है ॥ २८३ ॥
उस एक एक नाट्यशालामें उत्तम बत्तीस अप्सरायें नृत्य करती हैं। इस प्रकार बारह इन्द्रोंकी सात सेनायें कही गयी हैं ॥ २८४ ॥
सभी [ स्वर्गों ] में इन्द्रोंके प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक देवोंका पृथक् पृथक असंख्यात प्रमाण कहा गया है ॥ २८५ ॥
१द व वाहणएवा.
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