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________________ -८. २७६ ] अट्ठमो महाधियारो [८०९ सम्याणि यणीयाणि वसहाणीयस्स होति सारसाणिं । वरविविहभूसणेहिं विभूसिदंगाणि पत्तेकं ॥ २६९ सन्याणि यणीयाणिं कक्खं परि छस्सों सहावेणं । पुत्वं व विकुम्वणाए लोयविणिच्छयमुणी भणह॥ ६०० । ४२०० । पाठान्तरम् । वसहाणीयादीणं पुह पुह चुलसीदिलक्खपरिमाणं । पढमाए कक्खाए सेसासु दुगुणदुगुणकमे ॥ २७१ एवं सत्तविहाणं सत्ताणीयाण' होति पत्तेकं । संगायणिभाइरिया एवं णियमा परूवेति ॥ २७२ . पाठान्तरम् । सत्ताणीयाहिवई जे देवा होति दक्खिणिंदाणं | उत्तरइंदाण तहा ताणं णामाणि वोच्छामि ॥२७॥ वसहेसु दामयट्ठी तुरंगमेसु हवेदि हरिदामो । तह मादली रहेसुं गजेसु एरावदो णाम ॥ २७४ वाऊ पदातिसंघे गंधब्वेसु भरिट्ठसंका य । गलिंजणत्ति देवी विक्खादा णट्टयाणीए ॥ २७५ पीढाणीए दोणं अहिवइदेओ हुवेदि हरिणामो । सेसाणायवईणं णामसुं णथि उवएसो ॥ २७६ सब अनीकों से प्रत्येक उत्तम विविध प्रकारके भूषणोंसे विभूषित शरीरत्राले होते हुए वृषभानीकके सदृश हैं ॥ २६९ ॥ प्रत्येक कक्षाकी सब सेनायें स्वभावसे छह सौ और विक्रियाकी अपेक्षा पूर्वोक्त संख्याके समान हैं, ऐसा लोकविनिश्चयमुनि कहते हैं ॥ २७० ॥ ६०० x ७ = ४२०० । पाठान्तर । प्रथम कक्षामें वृषभादिक अनीकोंका प्रमाण पृथक् पृथक् चौरासी लाख है। शेष कक्षाओंमें क्रमशः इससे दूना दूना है। इस प्रकार सात प्रकार सप्तानीकोंमें प्रत्येकके हैं, ऐसा संगायणि आचार्य नियमसे निरूपण करते हैं ॥ २७१-२७२ ॥ पाठान्तर । दक्षिण इन्द्रों और उत्तर इन्द्रोंकी सात अनीकोंके जो अधिपति देव हैं उनके नामोंको कहते हैं ॥ २७३ ॥ वृषभोंमें दामयष्टि, तुरंगमोंमें हरिदाम, तथा रथोंमें मातलि, गजोंमें ऐरावत नामक, पदातिसंघमें वायु, गन्धवों में अरिष्टशंका (अरिष्टयशस्क) और नर्तकानीकमें नीलंजसा (नीलांजना) देवी, इस प्रकार सात अनीकोंमें ये महत्तर देव विख्यात हैं ॥ २७४-२७५ ॥ दोनोंकी पीठानीक (अश्वसेना ) का अधिपति हरि नामक देव होता है। शेष अनीकोंके अधिपतियों के नामोंका उपदेश नहीं हैं ॥ २७६ ॥ १द ब मुणि भणइं. २द ब सच्चविदाणं सत्ताणीयाणि. ३द संघाइणि° ४ दब उवरिम'. ५द ब तह मरदली. ६ द ब नीलंजसो.. TP, 102 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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