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-८. २१९] अट्ठमो महाधियारो
[८०१ णिच्चं विमलसरूवा पहावरदीवकुसुमकंतिल्ला । सचे अणाइगिहणा अकट्टिमाइं विरायति ॥ २१३ .
। एवं संखापरूवणा सम्मत्ता। बारसविहकप्पाणं बारस दा हुवंति वररुवा । दसविहपरिवारजुदा पुष्वज्जिदपुग्णपाकादो ॥ २३४ ... पडिइंदा सामाणियतेत्तीससुरा दिगिंदतणुरक्खा । परिसाणीयपइण्णयअभियोगा होति किब्मिसिया ॥ जुवरायकलत्ताणं तह तणुयतंतरायाणं । वपुरक्खाकीवाणं वरमज्झिमअवरतइस्लाणं ॥ २१६ सेणाण पुरजणाणं परिचाराणं तहेव पाणाणं । कमसो ते सारिच्छा पडिइंदप्पहुदिणी होति ॥ २१. एक्केक्का पडिइंदा एक्केकाणं हुवंति इंदाणं । ते जुवरायरिधीए व ते आउपरियंतं ॥ २१८ चउसीदिसहस्साणिं साहम्मिदस्स होति सुरपवरा । सामाणिया सहस्सा सीदी ईसाणइंदस्स ॥ २१९
८४०००। ८००००।
कमनीय, नित्य, विमल स्वरूपवाले, विपुल उत्तम दीपों व कुसुमोंसे कान्तिमान्, अनादि-निधन और अकृत्रिम विराजमान हैं:॥ २०९-२१३ ॥
___ इस प्रकार संख्याप्ररूपणा समाप्त हुई । ___बारह प्रकारके कल्पोंके बारह इन्द्र पूर्वोपार्जित पुण्यके परिपाकसे उत्तम रूपके धारक और दश प्रकार के परिवारसे युक्त होते हैं ॥ २१४ ॥
प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश देव, दिगिन्द्र, तनुरक्ष, पारिषद, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक, ये उपर्युक्त दश प्रकारके परिवार देव हैं ॥ २१५॥
वे प्रतीन्द्र आदि क्रमसे युवराज, कलत्र, तथा तनुज, तंत्रराय, कृपाणधारी शरीररक्षक, उत्तम मध्यम व जघन्य परिषदमें बैठने योग्य ( सभासद ), सेना, पुरजन परिचारक, तथा चण्डाल, इनके सदृश होते हैं ॥ २१६-२१७ ॥
एक एक इन्द्रके जो एक एक प्रतीन्द्र होते हैं वे आयु पर्यन्त युवराजकी ऋद्धिसे युक्तः रहते हैं ॥ २१८॥
सामानिक जातिके उत्कृष्ट देव सौधर्म इन्द्र के चौरासी हजार और ईशान इन्द्र के अस्सी हजार होते हैं ॥ २१९ ॥ सौ. ई. ८१०००, ई. ई. ८००००।
१ब परिइंद. TP. 101
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