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तिलोयपण्णत्ती
[ ८. २०४णीलेग वज्जिदाणिं अम्हे लंतवए णाम कप्पेसुं । रत्तेण विरहिदाणि महसुक्के तह सहस्सारे ॥ २०४ आणदपाणदआरणभचुदगेवज्जयादियविमागा । ते सव्वे मुत्ताहलमयंककुंदुज्जला होति ॥ २०५ सोहम्मदुगविमाणा घणस्सरूवस्स उवरि सलिलस्स | चेटुंते पत्रोवरि माहिंदसणकुमाराणि ॥ २०६ बम्हाई चत्तारो कप्पा चेटुंति सलिलवादूढं । आणदपाणदपहुदी सेसा सुद्धम्मि गयणयले ॥ २०७ उवासम्म इंदयाणं सेढिगदाणं पइणयाणं च । समवउरस्सा दी चेटुते विविहपासादा ॥ २०८ कणयमया पलिहमया मरगयमाणिक्कइंदणीलमया । विममया विचित्ता वरतोरणसुंदरदुवारा ॥ २०९ सत्तट्टणवदसादियविचित्तभूमीहिं भूसिदा सच्चे । वररयणभूसिदेहि बहुविहर्जतेहि रमणिज्जा ॥ २१० दिप्पंतरयगदीवा कालागरुपहुदिधूवगंधडा। आसणणाडयकीडणसालापहुदीहिं कयसोहा ॥ २११ सीहकरिमयरसिहिसुकयवालगरुडासणादिपरिपुण्णा | बहुविहविचित्तमणिमयसेन्जाविण्णासकमणिजा ॥
ब्रह्म और लांतव नामक कल्पोंमें कृष्ण व नीलसे रहित तीन वर्णवाले तथा महाशुक्र और सहस्रार कल्पमें रक्त वर्णसे भी रहित शेष दो वर्णवाले हैं ॥ २०४ ॥
आनत, प्राणत, आरण, अच्युत और अवेयादिके वे सब विमान मुक्ताफल, मृगांक अथवा कुन्द पुष्पके समान उज्ज्वल हैं ॥ २०५॥
सौधर्म युगलके विमान घनस्वरूप जलके ऊपर तथा माहेन्द्र व सनत्कुमार कल्पके विमान पवनके ऊपर स्थित हैं ॥ २०६ ॥
ब्रह्मादिक चार कल्प जल व वायु दोनोंके ऊपर, तथा आनत-प्राणतादि शेष विमान शुद्ध आकाशतलमें स्थित हैं ॥ २०७ ॥
इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानों के ऊपर समचतुष्कोण व दीर्घ विविध प्रकारके प्रासाद स्थित हैं ॥ २०८ ॥
__ ये सब प्रासाद सुवर्णमय, स्फटिकमणिमय, मरकत माणिक्य एवं इन्द्रनील मणियोंसे निर्मित, मूंगासे निर्मित, विचित्र, उत्तम तोरणोंसे सुन्दर द्वारोंवाले, सात आठ नौ दश इत्यादि विचित्र भूमियोंसे भूषित, उत्तम रत्नोंसे भूषित बहुत प्रकारके यंत्रोंसे रमणीय, चमकते हुए रत्नदीपकोंसे सहित, कालागरु आदि धूपोंके गन्धसे व्याप्त ; आसनशाला, नाट्यशाला व क्रीडनशाला आदिकोंसे शोभायमान; सिंहासन, गजासन, मकरासन, मयूरासन, शुकासन, व्यालासन एवं गरुडासनादिसे परिपूर्ग; बहुत प्रकारकी विचित्र मणिमय शय्याओंके विन्याससे
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